क़मर अदबी सोसायटी मुज़फ्फरनगर,उo प्र‌o की जानिब से ग़ालिब अकेडमी, बस्ती हज़रत निज़ामुददीन में अखिल भारतीय मुशायरा एंव एवार्ड फंक्शन

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क़मर अदबी सोसायटी, मुज़फ्फरनगर की जानिब से ग़ालिब एकेडमी में कुल हिन्द मुशायरा किया गया जिस की सदारत अमीर आज़म खान एडवोकेट, पूर्व चेयरमैन नगर पालिका मुज़फ्फरनगर, टैक्स बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और निज़ामत मुईन शादाब ने की। मेहमाने ख़ुसूसी प्रोफे़सर अख़्तरुल वासे ,पुर्व उपकुलपति विश्वविद्यालय ,और दीगर मेहमानों में प्रोफ़ेसर शहपर रसूल, वाइस चेयरमैन उर्दू एकेडमी दिल्ली और मूनिस खां, डायरेक्टर टाऊन एण्ड कन्टरी प्लेनर ने शिर्कत की। इस मौक़े पर देहली के मशहूर शायर दर्द देहलवी को कमर अदबी सोसायटी की तरफ से मुज़फ़्फ़र अहमद मुज़फ़्फ़र एवार्ड बराए 2024,

रिदाए क़मर और सिपास नामे से नवाज़ा गया। और आमान फरिग्रान्स,ए-55, अबुल फजल एन्क्लेव की तरफ से श्री अमानुल्लाह साहब ने मोअज़िज महमानान को ख़ुशबू के तोहफे पेश किए ।दर्द देहलवी के बारे में अबदुल हक़ सहर मुज़फ़्फ़र नगरी ने कहा कि दर्द देहलवी बहुत सी ख़ूबियों के मालिक हैं। ये शाइर ही नहीं, शाइर साज़ भी हैं। नये क़लमकारों की हौस्ला अफ़ज़ाई को अपना अदबी फ़रीज़ा समझते हैं। जनाब रईस आज़म खां *रईस* मुज़फ़्फ़र नगरी साहब ने कहा कि दर्द देहलवी की शायरी में आज के समाज का दर्द महसूस होता है। वो अरूज़ की पाबंदियों का लिहाज़ रखने के बावजूद अच्छे शेर कहने का हुनर जानते हैं। क़ारी अमानुल्लाह साहब की तिलावत और सलीम जावेद कैरान्वी की नात से मुशायरे का आग़ाज़ किया गया। शाइरों का एक एक शेर आप की खिदमत में हाज़िर है।
फिर आज मेरे दर्द ने मुझको मना लिया
कोई किसी अज़ीज़ से कब तक ख़फ़ा रहे
प्रोफ़ेसर शहपर रसूल
इस ज़िंदगी की इतनी हक़ीक़त है दोस्तो
आ कर नहाए और नहा कर चल गए
दर्द देहलवी
वो ख़ौफ़नाक अंधेरा है आज चारों तरफ़
हवा भी चीख़ रही है कोई चराग़ जले
अरशद नदीम
पार्सा होने की बुनियाद तो डाल आया हूं
जो भी साक़ी ने मुझे दी थी उछाल आया हूं
अंजुम हापुड़ी
हमारी हार पे है नाज़ इक ज़माने को
तुम्हारी जीत बड़ी र्शमनाक है साहिब
मुईन शादाब
मैं फूल हूं पत्ती हूं शजर हूं कि हवा हूं
तन्हाई के जंगल में खड़ा सोच रहा हूं
रईस मुज़फ़्फ़र नगरी
गुफ़्तुगू करने का अंदाज़ अलग है सब का
सिर्फ़ लहजे को ही मिअ’यार न समझा जाए
अबदुल हक़ सहर मुज़फ़्फ़र नगरी
नक़्श उल्फ़त का हर इक दिल पे उभारा जाए
अपने दुश्मन को भी इज़्ज़त से पुकारा जाए
शमीम किरतपुरी
सनद मिल तो गई दीवानगी की
बहुत खोना पड़ा पाने से पहले
शहादत अली निज़ामी
याद कर के चंद लम्हे साथ बीते वक़्त के
ख़ाक तुम पर डाल जाएंगे मुआसिर एक दिन
शाज़ जहानी
किसी की ज़िद ने खो दिया वगरना हम
सरो पे ताज के जैसे सजाए जाते थे
काशिफ़ अख़्तर
अल्लाह ऐसे शहर में मेरा मकां न हो
जिस शहर की फ़ज़ाओं में उर्दू ज़बां न हो
अल्ताफ़ मश’अल
इन के अलावा सईद नहटोरी, मुईन कुरैशी, हुकूम चंद कोठारी असग़र, इक़बाल तक़ी शेरकोटी, डा फ़रमान चौधरी, अशरफ़ हिलाल क़ास्मी, सलीम जावेद कैरान्वी, नाहीद काविश ने अपना कलाम सुनाया। जनाब ज़ुहेब ख़ान साहब, एडवोकेट अदनान ख़ां और श्री अतहर हसन ने मुशायरे को कामयाब बनाने में अहम किर्दार अदा किया। मुशायरे के सदर‌ के सदारती तक़रीर और जैड के फैज़ान एडवोकेट के धन्यवाद प्रस्तुत करने के पश्चात मुशायरे को विराम दिया गया।

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