*कानूनी अडचन के चलते नहीं हो रहा ईंटों का उत्पादन, कैसे बने गरीबों के आशियाने*

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*मुज़फ्फरनगर*

*आशियानों पर अब एनसीआर की मार………

*कुछ वर्षों पहले एनसीआर क्षेत्र में जुडने के लिए जनता में भारी उत्साह था। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से जुड जाने के बाद क्षेत्र में विकास की गंगा बहेगी। सभी ने ऐसी आशा लगाई थी। राजनीतिक प्रयासों से जनपद एनसीआर में शामिल तो हुआ किन्तु इसका प्रत्यक्ष कोई लाभ जनता को न मिल सका। उल्टे नये नियमों के कारण आम आदमी के सामने दुश्वारियां खडी हो गयी हैं ईंट भट्टों के समय से न चलने के कारण ईंटों का उत्पादन बन्द हो गया। उत्पादन न होने से ईंटों की कीमत आसमान छू गयी, जिससे निर्धन परिवारों के सामने मकान बनाना लोहे के चने चबाने के बराबर हो गया है। वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री आवास योजना के अन्तर्गत बन रहे मकानों का कार्य भी ईंट के महंगे होने व उपलब्धता न होने से रूक गया। योजना के अन्तर्गत बन रहे मकानों के मालिक मकान का कार्य रूक जाने से बेहद परेशान हैं। नागरिकों ने सरकार से मकान बनाने के लिए मिलने वाली धनराशि को दुगुना करने गुहार लगायी है।*
*मुज़फ्फरनगर ज़िले के अन्य नगर पंचायतों की तरह नगर पंचायत भोकरहेडी में प्रधानमंत्री आवास योजना के अन्तर्गत सैकडों मकानों के बनने का कार्य चल रहा था। सरकार द्वारा लाभार्थी को ढाई लाख रूपये की सहायता राशि तीन किश्तों में देने का प्रावधान है। पहली किश्त में पचास हजार रूपये की रकम मकान की नींव भरने व पिलर खडे करने के लिए दी जाती है। दूसरी किश्त डेढ लाख रूपये दीवारों व लिन्टर, प्लास्तर व रंग आदि के लिए दी जाती है। मकान का कार्य पूरा हो जाने के बाद तीसरी किश्त के रूप में पचास हजार रूपये दिये जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में छ माह से एक वर्ष तक समय लग रहा है। पक्का मकान बनाने के लिए लाभार्थियों ने अपने कच्चे मकान को तोड दिया किन्तु आसमान से टपके तो खजूर में अटके की कहावत चरितार्थ हो गयी लम्बी सरकारी प्रक्रिया के बाद पात्रता की श्रेणी में आने के बाद अब ईंट की कीमत आसमान छू रही है।लाभार्थियों ने बताया कि छ: माह पहले ईंट की कीमत चार हजार रुपये प्रति हजार थी, जो आज 6500 रूपये प्रति हज़ार हो गयी है। लोहा, सीमेन्ट, रोडी व अन्य सामग्री की कीमतें भी काफी बढ गयी हैं। महंगाई के कारण सरकार द्वारा दी जा रही रकम में मकान बनाना असम्भव है अपने कच्चे मकान को तोडकर कुछ लाभार्थी किराये पर रह रहे हैं, तो कुछ ने घास की झोपडियां बना ली है। लगातार हो रही बारिश के कारण अस्थायी झोंपडी में रह रहे नागरिक खुद को कोस रहे हैं तथा किराये पर रह रहे नागरिकों ने बताया कि पिछले सात आठ माह से प्रत्येक माह मकान का किराया देना पड रहा है। अपना कच्चा मकान खोकर वह फंस गये हैं। कुछ व्यक्ति मकान को बनाने में भारी कर्ज़ में डूब गये हैं तो कुछ के मकान आधे अधूरे पड़े हैं मकान की पक्की दीवारें मुसीबतों की बारिश को किस प्रकार रोके गीं यह तो समय ही बताएगा किन्तु फिलहाल तो समस्या का कोई हल होता नज़र नहीं आता है।

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