Team TRP
कांग्रेस को खुद की राजनीतिक ताकत के बारे में जमीनी सच से रूबरू होना बहुत जरूरी है। उसे यह समझना होगा कि वह अब केवल चार राज्यों-पंजाब, कर्नाटक, मिजोरम और पुदुच्चेरी में ही सत्तारूढ़ रह गई है। इनमें से मिजोरम और केंद्रशासित पुदुच्चेरी बहुत छोटे एक-एक सांसदों वाले राज्य हैं जबकि कर्नाटक में अभी विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। जिन राज्यों में कांग्रेस की सीधी लड़ाई भाजपा के साथ है वहां तो वह भाजपा को चुनौती दे पाने में सफल हो पा रही है लेकिन जहां कोई गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी मजबूत क्षेत्रीय दल मौजूद हैं, वहां उसकी हालत बेहद खराब है। अभी भी हिंदी पट्टी के दो सबसे बड़े राज्यों-उत्तर प्रदेश और बिहार के साथ ही पूर्वी भारत के पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में उसकी हालत खस्ता है। पश्चिम बंगाल के हाल के संसदीय और विधानसभा के उपचुनावों और ओडिशा में विधानसभा के उपचुनाव में अपने कब्जेवाली सीटों पर भी नगण्य मत पाने वाली कांग्रेस के उम्मीदवारों की उत्तर प्रदेश में फूलपुर और गोरखपुर के संसदीय उपचुनावों में भी भारी दुर्गति हुई। कांग्रेस के उम्मीदवारों को वहां 20 हजार से भी कम मत मिले और जमानतें जब्त हो गईं।
राहुल को दिखाना होगा लचीलापन
कांग्रेस के महाधिवेशन के बाद और अधिक ताकतवर, परिपक्व और आक्रामक नेता के रूप में उभरे राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश में मिलने वाली है जहां उसका जनाधार तेजी से खिसका है जबकि वहां उसके बड़बोले नेताओं की भरमार है। उसे अगर राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत विकल्प के रूप में उभरना है तो वहां दिल बड़ाकर सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल सहित कुछ और छोटे दलों को साथ लेकर महागठबंधन बनाना होगा। बिहार में तो वह पहले से ही महागठबंधन का हिस्सा है। महाराष्ट्र में शरद पवार की एनसीपी और कांग्रेस मिलकर लड़ने पर सहमत हो चुके हैं। उन्हें ‘मोदी मुक्त भारत’ का आह्वान करने वाले राज ठाकरे की मनसे का परोक्ष सहयोग और समर्थन भी मिल सकता है। एनडीए के भीतर रहे या बाहर, शिवसेना की कोशिश भाजपा को कमजोर करने की ही रहेगी। महाराष्ट्र में किसानों को एकजुट कर भाजपा के करीब लाने में अहम भूमिका निभाने वाले स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के प्रमुख और सांसद राजू शेट्टी भी कांग्रेस के करीब आ रहे हैं। उनकी पार्टी किसानों के मुद्दे पर एनडीए को छोड़ने वाली पहली पार्टी थी। पश्चिमी महाराष्ट्र के किसानों में असर रखने वाले शेट्टी ने 19 मार्च को राहुल गांधी के साथ मुलाकात की जो संकेत है कि आगामी चुनावों में वे कांग्रेस के साथ तालमेल कर सकते हैं। कांग्रेस कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार की नेशनल कान्फ्रेंस और झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी।
तालमेल बनाना बड़ी चुनौती
उत्तर-पूर्व जहां कभी कांग्रेस का वर्चस्व होता था, भाजपा उसे वहां से बेदखल करती नजर आ रही है। इन राज्यों में भी कांग्रेस को अपनी ताकत सहेजने-समेटने के साथ ही नए-पुराने सहयोगी दलों के साथ किसी तरह का गठबंधन बनाना होगा। असम में सांसद बदरुद्दीन अजमल की एआइयूडीएफ, त्रिपुरा में माकपा या तृणमूल कांग्रेस और नगालैंड में नगा पीपुल्स फ्रंट के साथ वह तालमेल की संभावनाएं तलाश कर सकती है। इसी तरह से दक्षिण भारत में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्य अब भी कांग्रेस के लिए चिंता का कारण बने हुए हैं। आंध्र प्रदेश में इसे तय करना है कि एनडीए से अलग होने की स्थिति में टीडीपी या वाइएसआर कांग्रेस के साथ किस तरह का रिश्ता रखना है। सरकार बनने पर आंध्र प्रदेश के लिए विशेष आर्थिक पैकेज देने की बात कह कर राहुल गांधी ने वहां कांग्रेस के प्रति राज्य विभाजन के दौर में पैदा हुई नफरत को कम करने में सफलता पाई है। कांग्रेस को तेलंगाना में टीआरएस के नेता के. चंद्रशेखर राव के साथ भी किसी तरह का कामकाजी रिश्ता बनाना होगा। तमिलनाडु में द्रमुक अभी कांग्रेस-यूपीए के साथ है लेकिन भाजपा की नजर द्रमुक पर भी है।