लोकसभा चुनाव से पहले ‘ममता’मयी मुलाकातों का मतलब समझिए ..

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बीते दो दिनों से देश की राजधानी में तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मौजूद हैं. वो क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं ओर विपक्ष के असंतुष्ट नेताओं से मुलाकातें कर रही हैं.

बुधवार देर शाम उन्होंने 10 जनपथ में कांग्रेस नेता और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाक़ात की. मुलाक़ात के बाद उन्होंने मीडिया को बताया कि “वो चाहती हैं कि 2019 चुनाव में हर जगह पर वन इज़ टू वन होना चाहिए.”

उन्होंने कहा कि “जहां पर जो पार्टी मज़बूत स्थिति में है वहां से उसे ही चुनाव लड़ना चाहिए.”

ममता बनर्जी का कहना है कि अगर 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा को हराना है तो इसके लिए सभी छोटी-बड़ी क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियों को एक साथ आना होगा.

इस तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं कि ममता बनर्जी गैर भाजपा-गैर कांग्रेस तीसरे मोर्चे की तैयारी कर रही हैं, लेकिन सोनिया गांधी से मुलाकात से उन्होंने साफ़ कर दिया कि वो कांग्रेस को भी साथ ले कर चलना चाहती हैं.

सोनिया गांधी से मुलाक़ात से पहले ममता बनर्जी ने एनडीए के आलोचक रहे भाजपा के असंतुष्ट नेताओं – अरुण शौरी, शत्रुघ्न सिन्हा और यशवंत सिन्हा से भी मुलाकात की.

यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा कि वो ममता का साथ देंगे. शत्रुघ्न सिन्हा ने तो यहां तक कहा कि ये देश के हक़ में लिया जा रहा क़दम है.

ममता बनर्जी ने हाल के दिनों में जिन नेताओं से मुलाकात की है उनकी सूची काफ़ी लंबी है. बीते दिनों उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव और डीएमके की कानिमोड़ी से मुलाकात की है. वाईएसआर कांग्रेस और बीजेडी के सांसदों समेत एनडीए सरकार से अलग हुई चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी के सांसद से भी वो मिली हैं.

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर बुधवार प्रेस कॉनफ्रेंस मे पश्चिम बंगाल में रामनवमी के दौरान हुई संप्रदायिक हिंसा क मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि ममता बैनर्जी का प्रदेश जल रहा है और वो अगले साल होने वाले चुनावों की तैयारी में व्यस्त हैं.

लेकिन क्या इन ताबड़तोड़ मुलाकातों के साथ वो अगले साल होने वाले चुनावों तक एक गठबंधन खड़ा कर पाएंगी और क्या इन पार्टियों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर सहमति बन पाएगी? कोलकाता में मौजूद द हिंदू के ब्यूरो चीफ़ शुभोजित बागची से बीबीसी संवाददाता मानसी दाश ने यही सवाल किया.

पढ़िए शुभोजित बगची का नज़रिया

सवाल ये है कि ममता बनर्जी चुनाव से पहले कोई गठबंधन बना पाएंगी या नहीं. मौजूदा हालात को देखें तो ऐसा लगता कि कुछ ना कुछ गठबंधन तो बनेगा ही, लेकिन ये सवाल है कि इस गठबंधन का नेतृत्व कांग्रेस करेगी या कोई और पार्टी करेगी.

ममता बनर्जी चाहती हैं कि वो फ़ेडरल फ़्रंट जैसा कुछ बनाएं. टीआरएस के साथ वो पहले ही मुलाकात कर चुकी हैं, अगर वो कुछ पार्टियों को साथ लाने में कामयाब रहीं तो इससे उन्हें फ़ायदा होगा.

ममता क्या चाहती हैं

बंगाल में कुल 42 लोकसभा सीटें हैं यहां उन्हें अच्छी बढ़त मिलनी चाहिए. और पार्टियों के साथ मिलकर अगर वो अपने आंकड़े को बढ़ा कर 60-70 तक सीटों तक ले जा पाती हैं तो उनके लिए ये बड़ी कामयाबी होगी और वो अपने नेतृत्व का लोहा मनवाने में भी सफल होंगी.

अभी चुनावों में काफ़ी वक्त बाकी है और कांग्रेस के साथ ममता बनर्जी का गठबंधन होता है तो ये देखने वाली बात होगी कि वो बंगाल में कांग्रेस के लिए कितनी सीटें छोड़ती हैं.

अगर वो अपनी पार्टी के बूते अकेले बंगाल में चुनाव लड़ती हैं तो उनका प्रदर्शन काफ़ी बेहतर होगा. लेकिन अगर कांग्रेस ने 10-12 सीटें मांगीं तो वो नहीं देंगी क्योंकि वो जानती हैं कि कांग्रेस यहां पर कमज़ोर है.

वन टू वन फ़ॉर्मूले का पालन करना मुश्किल

जिस वन टू वन फ़ॉर्मूले की बात ममता कर रही हैं वो वन टू वन बंगाल में ही बनाना बहुत मुश्किल है. सीपीएम भी अपना उम्मीदवार खड़ा करेगी तो ऐसे में इनके साथ आने से बंगाल में सीटों का बंटवारा कैसे होगा ये बड़ा सवाल है.

ममता बनर्जी को पता है कि बंगाल के बाहर उन्हें सीटें नहीं मिलेंगी तो वहां पर वो वन टू वन की बात तो कर सकती हैं, लेकिन बंगाल के मामले में ये उन्हीं के लिए मुश्किल का सबब बन सकता है.

वन टू वन का फ़ॉर्मूला राज्यों की राजनीति पर निर्भर करता है. ये कहना आसान है, लेकिन इसे करना मुश्किल हो सकता है.

वो फ़िलहाल ये देखने की कोशिश कर रही हैं कि वो अगर 50-60 सीटें तक अपने सीधे नियंत्रण में ले आ पाती हैं तो तो वो बाहर से किसी दल का समर्थन ले सकती हैं. कहा जाए तो ममता पानी की गहराई नाप रही हैं और मुलाकातों का ये सिलसिला इसी प्रक्रिया का हिस्सा है.

भाजपा नेताओं से भी की मुलाकातें

हालांकि आप देख सकते हैं कि ममता बनर्जी ने भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद से भी मुलाकात की है.

कहा जा सकता है कि वो अपने सभी रास्ते खुले रख रही हैं. ये भी हो सकता है कि अगर भाजपा को उनका समर्थन चाहिए तो वो उन्हें भी अपना समर्थन दे सकती हैं.

लेकिन ये बात भी ध्यान देने वाली है कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नाराज़ हैं और मोदी के अलावा किसी और को नेता बनाया जाए तो शायद वो ऐसा कर सकती हैं. हालांकि ये भी अभी दूर की कौड़ी ही लगता है.

बंगाल में 30 फ़ीसदी मुसलमान वोट है और इस कारण उनके लिए ऐसा करना इतना आसान भी नहीं होगा.

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