Kumar Prem Ji (Senior Editor) TRP
Pic. Courtsey: Hindustantimes.com
.. विपक्ष के लिए 2019 की जंग जीतने का एक तरीका ये भी हो सकता है कि वह सत्ताधारी दल के सेनाप्रमुख यानी नरेन्द्र मोदी को परास्त कर दे। अरविन्द केजरीवाल ने भी इसी उम्मीद से वाराणसी में नरेंद्र मोदी को घेरा था, मगर वे खुद शिकार हो गये। राष्ट्रीय राजनीति में उनकी आकांक्षा ने दम तोड़ दिया। दिल्ली तक सिमट कर रह गये। 56 फीसदी वोट लेकर मोदी विजेता बनकर निकले थे जिसका संदेश था कि समूचा विपक्ष भी एक हो जाए तो मोदी को नहीं हरा सकता।
आईए जानते हैं कि नरेंद्र मोदी को 2019 में सुनिश्चित जीत के लिए कैसी सीट चाहिए, क्या खासियत होनी चाहिए ऐसी सीट पर :
बनारस जैसी कोई ऐसी सीट जहां अल्पसंख्यक 16-18 फीसदी या उससे कम हो।
एसपी-बीएसपी जैसे ध्रुवीकरण की सम्भावना न हो या ऐसे ध्रुवीकरण बेअसर हों यानी गोरखपुर-फूलपुर जैसी स्थिति पैदा न हो।
बनारस की ही तरह बीजेपी के लगातार जीतते रहने का जिस सीट पर लम्बा इतिहास रहा हो।
ऐसी सीट हो जहां कांग्रेस बनाम बीजेपी हो और कांग्रेस की मदद करने वाली ध्रुवीकरण की शक्तियां न हों। ऐसी सीटें मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक जैसे राज्यों में हो सकती हैं।
ऐसी सीट हो जहां एंटी इनकम्बेन्सी ना हो यानी सीट उस राज्य से हो जो गैर बीजेपी शासित हो, मगर बीजेपी के प्रभाव वाला हो जहां विरोधी ध्रुवीकरण भी सम्भव न हो।
सीट ऐसी हो जहां दलित और मुस्लिम मिलकर भी नरेंद्र मोदी के लिए जीत का समीकरण न बदल पाएं या ऐसा कोई ख़तरा पैदा न करें।
सीट ऐसी हो जहां राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक कोई भी ध्रुवीकरण नरेंद्र मोदी के लिए ख़तरा न बन सके।
गोरखपुर और फूलपुर में हुए उपचुनावों में एसपी-बीएसपी ने इस मिथक को तोड़ दिया कि समूचा विपक्ष मिलकर भी गोरखपुर-फूलपुर में बीजेपी को नहीं हरा सकता। यहीं से उपजी है वो उम्मीद कि मोदी को वाराणसी में हराया जा सकता है। यहीं से पैदा हुआ है वो डर कि कहीं नरेंद्र मोदी भी वाराणसी की सीट हार न जाएं। इसी पृष्ठभूमि में नरेंद्र मोदी के लिए एक ऐसी सीट की बीजेपी को तलाश है जहां कोई शक-शुबहा की गुंजाइश न रहे। सवाल ये है कि ऊपर जिन 7 आदर्श स्थितियों की चर्चा की गयी है वो किस सीट पर मौजूद हैं?”
(first Published @ UCNewsApp)