बीजेपी में दलित ‘भसड़’ की राजनीति समझिए ..

0
222

Team TRP

बीजेपी के करीब आधा दर्जन सांसद बगावती हो चुके हैं .. शुरुआत उत्तर प्रदेश में बहराइच से सांसद सावित्री बाई फुले ने की और फिर इसमें अशोक दोहरे, छोटेलाल खरवार और डॉक्टर यशवंत सिंह से होते हुए उत्तर-पश्चिम दिल्ली से सांसद और उत्तर प्रदेश से ही ताल्लुक रखने वाले डॉक्टर उदितराज का नाम जुड़ता चला गया.

सांसदों ने आरोप लगाए हैं कि 2 अप्रैल को ‘भारत बंद’ के बाद एससी/एसटी वर्ग के लोगों को उत्तर प्रदेश सहित दूसरे राज्यों में सरकारें और स्थानीय पुलिस झूठे मुकदमे में फंसा रही है उन पर अत्याचार हो रहा है.

सावित्री बाई ने तो लखनऊ में उन्होंने शक्ति परीक्षण भी कर लिया.

वहीं, नगीना से सांसद डॉक्टर यशवंत सिंह ने पीएम को पत्र लिख कर कहा कि पिछले चार साल में केंद्र सरकार ने दलितों के लिए कुछ भी नहीं किया है.

इटावा से बीजेपी सांसद अशोक दोहरे ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि पुलिस निर्दोष लोगों को जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए घरों से निकाल कर मारपीट कर रही है. इससे इन वर्गों में गुस्सा और असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है.

कुछ ऐसी ही बातें रॉबर्ट्सगंज से बीजेपी के दलित सांसद छोटेलाल खरवार ने पीएम को लिखे पत्र में कही हैं.

छोटेलाल खरवार ने तो राज्य के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी, प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडे और संगठन मंत्री सुनील बंसल की भी शिकायत की थी और ये भी लिखा था कि उनके ज़िले के आला अधिकारी उनका उत्पीड़न कर रहे हैं.

आरोपों की गंभीरता

इन सांसदों के ये आरोप इतने गंभीर हैं जितने कि बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती बीजेपी और उसकी केंद्र और राज्य की सरकार पर लगा रही हैं.

‘दलित’विरोध की राजनीति समझिए ..

जानकारों का कहना है कि 2019 में संभावित लोकसभा के आम चुनाव को देखते हुए ये तो तय है कि बीजेपी के कई मौजूदा सांसदों का टिकट कटना तय है.

जहां तक दलित सांसदों की बात है तो उन्हें ये अच्छा मौक़ा भी मिल गया है कि वो दलितों के मुद्दे पर उनकी सहानुभूति लेते हुए अपनी पार्टी पर दबाव बना सकें.

जानकारों की मानें तो बीजेपी के सांसदों ने अपने क्षेत्रों में कुछ काम तो किया नहीं है या यों कहिए कि कर नहीं पाए.. ऐसे में पार्टी से भी टिकट कटने का डर है और उन्हें ख़ुद भी दोबारा इसी पार्टी से चुनाव जीतना मुश्किल लग रहा है. रही-सही कसर सपा-बसपा गठबंधन ने पूरी कर दी है.

“सुरक्षित सीटों के सांसदों के लिए पाला बदलने का भी अच्छा मौक़ा है और दबाव डालकर बीजेपी में ही टिकट बचाए रखने का भी. तो ये सब उसी अफ़रा-तफ़री का नतीजा दिख रहा है.”

दरअसल गोरखपुर और फूलपुर चुनाव के बाद सपा और बसपा जिस तरह से एक-दूसरे के नज़दीक आ रहे हैं उससे ख़ासतौर पर उन नेताओं का बीजेपी से मोहभंग हो रहा है जो दूसरी पार्टियों से बीजेपी में गए थे. सावित्री बाई फुले, छोटेलाल खरवार और अशोक दोहरे ऐसे नेताओं में शामिल हैं.

हालांकि यहां एक सवाल ये भी उठता है कि क्या बीएसपी में इनकी वापसी संभव है?

फ़िलहाल तो बीएसपी नेता इस सवाल का जवाब ‘न’ में दे चुकी हैं जब रविवार को उन्होंने लखनऊ में कहा, “इन सांसदों को दलितों से जब इतनी ही हमदर्दी थी तो ये चार साल से क्या कर रहे थे? ये सब बीजेपी की और इन नेताओं की सोची-समझी साज़िश है.”

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here