क्या ‘कांग्रेस’ शासित राज्यों को जानबूझकर कम पैसा दे रहा है केंद्र ?

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Dr. Buddhsen Kashyap, Senior Editor, TRP

विकास को मुद्दा बना सत्ता में आयी नरेन्द्र मोदी सरकार को अब विकास के ही मुद्दे पर घेरने की तैयारी चल रही है. इस बाबत दक्षिण भारत के चार राज्य-सरकारो की एक बैठक भी हो चुकी है. कोच्चि में हुई इस बैठक में केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और पुदुचेरी के वित्त मंत्रियों ने हिस्सा लिया. अन्य राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ दो सप्ताह बाद विशाखापत्तनम में एक और बैठक आयोजित की जाएगी और उसके बाद कोई ठोस निर्णय लिये जाने की संभावना है. कोच्चि में हुई बैठक में केन्द्र सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाये गये. कहा गया कि केन्द्र सरकार विकास के इंजन के रूप में काम कर रहे मजबूत राज्यों को कमजोर बना रही है. उन पर नए प्रतिबंध लगाया जा रहा है. केन्द्र के इस फैसले से उन्हें मिलने वाले धन में कमी आएगी और इसका सीधा असर गरीबों के लिए चलाये जानेवाले कल्याणकारी कार्यक्रमों पर पड़ेगा.
कर्नाटक सरकार के प्रतिनिधि कृष्णा बायर गौड़ा ने बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगाने के लिए राष्ट्रीय कर्तव्य निभानेवाले राज्यों को टर्म ऑफ रेफरेंस को बदल कर सजा दिये जाने का आरोप लगाया. गौड़ा के अनुसार इससे प्रगतिशील राज्यों को मिल रही आर्थिक मदद में कमी आएगी जो देश-हित में नहीं है. केरल के वित्त मंत्री डॉ. थॉमस इसाक ने भी इस मुद्दे पर चिंता जतायी. उनके मुताबिक, प्रगतिशील राज्यों को पिछड़े राज्यों की मदद करनी चाहिए. लेकिन जनसंख्या पर नियंत्रण रखने में अपनी सफलता के लिए प्रगतिशील राज्यों को इनाम का हिस्सा ना दिया जाना जायज नहीं है. उन्होंने केन्द्रीय वित्तमंत्री पर राज्य-सरकारों की चिंताओं के उत्तर नहीं देने का भी आरोप लगाया. आंध्रप्रदेश के वित्तमंत्री रामकृष्णाडू ने भी केन्द्र सरकार पर संविधान के मुताबिक राज्य के हकवाले फंड उनसे लेना चाहता है.
हालांकि, देश के वित्तमंत्री अरुण जेटली राज्यों के साथ भेदभाव के आरोप को गलत बताया और इस मुद्दे को लेकर कोच्चि में हुई इस बैठक को अनावश्यक विवाद बढ़ानेवाला कहा. वित्तमंत्री के अनुसार, टर्म ऑफ रेफरेंस किसी राज्य के खिलाफ नहीं हैं और न ही जनसंख्या पर नियंत्रण करनेवाले राज्यों के खिलाफ कुछ किया जा रहा है.
केंद्र सरकार ने हाल ही 15वें वित्त आयोग के लिए टर्म ऑफ रेफरेंस को 1971 से हटा कर 2011 किया है. आशंका जतायी जा रही है कि ऐसा करने से राज्यों को मिल रहा धन 42 फीसदी तक कम हो सकता है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने हाल ही में एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा था कि दक्षिण भारत के छह राज्य ज्यादा टैक्स देते हैं लेकिन उन्हें बदले में कम ही मिलता है. उत्तर प्रदेश में टैक्स के एक रुपये के बदले राज्य को 1.79 रुपये मिलते हैं जबकि कर्नाटक को एक रुपये के बदले 0.47 पैसे. उन्होंने इस असंतुलन को कम किए जाने की जरूरत बतायी और कहा कि इससे विकास कार्य करने वाले राज्यों को फायदा मिलेगा. इसी तरह आंध्रप्रदेश के वित्तमंत्री यानामल रामकृष्णाडू कहते हैं कि उनके राज्य के पास 103 कल्याणकारी योजनाएं हैं और इसपर राज्य के कुल बजट (1.90 लाख करोड़) में से 70 हजार करोड़ खर्च करते हैं. अगर केंद्र सरकार इतने लगाम लगाएगी तो राज्य ये खर्च कैसे उठा पायेगा? ऐसे में उस आम आदमी का क्या होगा जो राज्य सरकार की विकास योजनाओं पर निर्भर है?

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