क्या इस बार ‘मम्मी’ की सीट से लड़ेंगे राहुल गांधी ?

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team TRP
उत्तर प्रदेश में अमेठी और रायबरेली संसदीय सीटें कांग्रेस का गढ़ मानी जाती हैं. 2014 की ‘मोदी लहर’ में भी कांग्रेस पार्टी ये दोनों सीटें बचाने में क़ामयाब रही थी. ये अलग बात है कि अमेठी में राहुल गांधी की जीत का अंतर ज़रूर कुछ कम हुआ लेकिन रायबरेली में सोनिया गांधी की जीत का अंतर भी पहले की तरह ही बरक़रार रहा.

अमेठी में बीजेपी ने राहुल गांधी के मुक़ाबले स्मृति ईरानी को चुनाव में उतारा था. स्मृति ईरानी को चुनाव हारने के बावजूद पार्टी ने कैबिनेट मंत्री बनाया और अहम विभाग दिया, वहीं स्मृति ईरानी भी एक सांसद की ही तरह लगातार अमेठी के दौरे पर आती रहती हैं ताकि अमेठी की जनता को इस बात का अहसास करा सकें कि वो अगला लोकसभा चुनाव यहीं से लड़ेंगी.

विकास के मुद्दे पर अमेठी के सांसद और कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी पर वो लगातार तंज़ भी कसती रहती हैं.

हालांकि राहुल गांधी भी अमेठी के दौरे पर लगातार आते रहते हैं, लोगों से मिलते-जुलते भी हैं और बीजेपी सरकार पर अमेठी के विकास कार्यों को रोकने या कम करने के आरोप भी लगाते हैं. लेकिन पिछले चार साल से बीजेपी जिस तरह से लगातार उन्हें अमेठी में घेरने की कोशिश में लगी है और पिछले दिनों सोनिया गांधी के रायबरेली दौरे के समय राहुल गांधी की जो सक्रियता वहां देखने को मिली उससे इस बात के क़यास एक बार फिर लगने लगे हैं कि क्या राहुल गांधी 2019 में अमेठी की बजाय रायबरेली सीट से चुनाव लड़ेंगे?
राहुल अमेठी क्यों छोड़ सकते हैं?

फ़िलहाल तो इस बात को अभी न सिर्फ़ अमेठी बल्कि रायबरेली के कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता भी सीधे तौर पर नकार रहे हैं.
सोनिया गांधी पिछले दिनों डेढ़ साल बाद अपने चुनावी क्षेत्र में आई थीं. इस बीच हमेशा प्रियंका गांधी ही बतौर उनकी प्रतिनिधि रायबरेली आती रही हैं. लेकिन इस बार साथ में राहुल गांधी थे और काफी सक्रिय भी. इस दौरे को कवर करने वाले रायबरेली के पत्रकार माधव सिंह कहते हैं, “राहुल गांधी पहली बार रायबरेली में इतने सक्रिय रहे. सोनिया गांधी ने तो सिर्फ़ कुछ लोगों से मुलाक़ात की लेकिन लोगों की समस्याएं सुनना और फिर चौपाल लगाकर लोगों से संवाद करना कुछ न कुछ संदेश तो देता ही है.”

अमेठी और रायबरेली यूपी में गांधी परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती हैं. रायबरेली से सोनिया गांधी 2004 से लगातार सांसद हैं और इससे पहले वो अमेठी से चुनाव लड़ती थीं. साल 2004 में सोनिया गांधी ने अमेठी सीट राहुल गांधी के लिए खाली कर दी और ख़ुद रायबरेली से चुनाव लड़ीं. शायद यही वजह है कि रायबरेली से उनके चुनाव न लड़ने की स्थिति में राहुल गांधी के विरासत सँभालने के क़यास लग रहे हैं.

यही नहीं, क़यास इस बात के भी लग रहे हैं कि बीजेपी में लगातार ‘उपेक्षित’ चल रहे राहुल गांधी के चचेरे भाई वरुण गांधी भी 2019 के लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस पार्टी में शामिल हो सकते हैं. इस बारे में पिछले दिनों कांग्रेस के एक बड़े नेता का कहना था, “वरुण गांधी का आना लगभग तय हो चुका है लेकिन पार्टी की सदस्यता उन्हें ऐन चुनाव के वक़्त ही दिलाई जाएगी.” उनका दावा है कि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने के बाद अब मेनका गांधी भी इसके विरोध में नहीं हैं.

रायबरेली से कौन लड़ेगा
रायबरेली में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना था कि ऐसी स्थिति में अमेठी, सुल्तानपुर और रायबरेली की सीटों पर बदलाव संभव है. उनके मुताबिक, “यदि वरुण गांधी शामिल हुए तो अमेठी से वो चुनाव लड़ सकते हैं और तब राहुल गांधी रायबरेली और प्रियंका गांधी सुल्तानपुर से लड़ें.”

इन संभावनाओं पर कांग्रेस के नेता खुलकर तो बात नहीं करते लेकिन ज़्यादातर नेताओं का मानना है कि सोनिया गांधी के न लड़ने की स्थिति में प्रियंका गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी, न कि राहुल गांधी.

कांग्रेस नेताओं के मुताबिक़, पिछले कुछ समय में प्रियंका ने रायबरेली के कई कांग्रेसी नेताओं को दिल्ली बुलाकर लंबी बातचीत की है. उनसे न सिर्फ पार्टी के कामकाज की जानकारी ली, बल्कि भविष्य के लिए सुझाव भी मांगे. पार्टी के स्थानीय नेताओं का कहना है कि रायबरेली में कांग्रेस से जुड़े हर निर्णय प्रियंका गांधी ही ले रही हैं. हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए कांग्रेस एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह की बातों से भी प्रियंका गांधी की सक्रियता की पुष्टि होती है.

जानकारों के मुताबिक, रायबरेली में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की अचानक बढ़ी सक्रियता भी इस ओर इशारा करती है कि सोनिया गांधी की अनुपस्थिति में किसी दूसरे कांग्रेस उम्मीदवार को चुनौती देना आसान हो सकता है. लेकिन अमित शाह की रैली में शामिल होने आए एक बीजेपी कार्यकर्ता के मुताबिक, “रायबरेली में कांग्रेस को कड़ी चुनौती देने का मतलब सिर्फ़ वोटों के अंतर में दिख सकता है, गांधी परिवार के किसी व्यक्ति की हार और जीत में नहीं.”
First Published ON BBC

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