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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ही एक भाषण में बिना नाम लिए कहा था, “चाहे वो तेजस्वी हों, ओजस्वी हों, शास्त्रों के ज्ञाता हों, लेकिन अगर बहन-बेटियों के साथ ग़लत करेंगे तो समाज उन्हें राक्षस की तरह नवाज़ेगा.”
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, नरेंद्र मोदी ने साल 2013 में भी पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह से कहा था कि वे सुनिश्चित करें कि पार्टी प्रवक्ता और नेता आसाराम का बचाव ना करें.
ख़ास बात ये है कि साल 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती ने विधानसभा के अंदर आसाराम का एक प्रवचन कराया था.
और साल 2013 में जब उन्हें इंदौर से गिरफ़्तार किया गया था तब भी मध्यप्रदेश में बीजेपी की ही सरकार थी.
‘जड़ चेतन जीव जगत सकल राम महि जानी’ रामायण में कहा गया है…जड़ और चेतन, उनकी गहराई में तो बस एक ही सत्ता है…जैसे गुरु और उनकी शक्ति.”
रामायण के श्लोक से अपना प्रवचन शुरू करते हुए आसाराम कहते हैं, “लोग बोलते हैं कि कृष्ण के पास वो गई, फलानी गई, ठिकानी गई, लेकिन सारी की सारी गोपियां तर गईं. गंदी नज़र वाले गंदी नज़र से देखते हैं.”
ये कहते-कहते आसाराम मंच पर झूमने लगते हैं.
उनके साथ-साथ सामने खड़ी सैकड़ों महिलाएं भी झूमने लगती हैं. पीछे खड़े हुए पुरुषों का हुजूम भी आनंदित होकर तालियां बजाने लगता है.
ये 23 जून, 2013 का ‘सत्संग’ था.
अपने ‘प्रिय बापू जी’ के ऐसे सत्संगों को सुनने के बाद ही उनके अनुयायी अपने बच्चों को भी गुरु की सेवा करने की प्रेरणा देते थे.
अपने-अपने धर्मों के भगवानों को हटाकर ‘प्रिय बापू जी’ की तस्वीरें और मूर्ति की पूजा करने लगते थे.
लेकिन 21 अगस्त, 2013 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में रहने वाले ऐसे ही एक भक्त परिवार ने आसाराम के ख़िलाफ़ अपनी 16 साल की बेटी के साथ बलात्कार का मामला दर्ज करवाया था.
आसाराम के संत रूप में अटूट श्रद्धा रखने वाले पीड़िता के पिता ने अपने पैसों से शाहजहांपुर में उनके लिए एक आश्रम बनवाया था.
यही नहीं इस परिवार ने अपने दो बच्चों को ‘संस्कारवान शिक्षा’ के लिए आसाराम के छिंदवाडा स्थित गुरुकुल में पढ़ने भी भेजा.
7 अगस्त 2013 को पीड़िता के पिता को छिंदवाडा गुरुकुल से एक फ़ोन आया. फ़ोन पर उन्हें बताया गया कि उनकी 16 वर्षीय बेटी बीमार है.
पीड़िता के माता पिता छिंदवाडा गुरुकुल पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि उनकी बेटी पर भूत-प्रेत का साया है जिसे आसाराम ही ठीक कर सकते हैं.
14 अगस्त को पीड़िता का परिवार आसाराम से मिलने उनके जोधपुर आश्रम पहुँचा.
मुकदमे में दायर चार्जशीट के अनुसार आसाराम ने 15 अगस्त की शाम 16 वर्षीय पीड़िता को ‘ठीक’ करने के बहाने से अपनी कुटिया में बुलाकर बलात्कार किया.
इसके बाद इस परिवार ने अपनी बेटी को इंसाफ़ दिलाने के लिए एक नई जंग शुरू की.
परिवार के मुताबिक़ उन्हें जान से मार देने की धमकी दी गई.
ये वो समय था जब अख़बारों से लेकर टीवी चैनलों पर आसाराम के ख़िलाफ़ आरोपों पर बहस जारी थी.
लेकिन इस सब के बावजूद आसाराम अपने आश्रमों में प्रवचन करते रहे और झूमते रहे.
आसाराम पर लगते इन आरोपों को लेकर उनके कुछ भक्तों के मन में भी शक घर करने लगा था.
28 अगस्त 2013 को आसाराम अपने एक प्रवचन में तार्किक आधार पर भक्तों को ये समझाने की कोशिश करते हैं कि ये संभव ही नहीं है कि वह बलात्कार कर सकें.
वह कहते हैं, “जहां तक मुझे याद है 10-11 तारीख़ को जोधपुर में सत्संग था. इसके बाद मैं जोधपुर आश्रम में गया ही नहीं हूं. आश्रम से 30-35 किलोमीटर दूर किसान ने अपने घर के पास में ही गुरु की कुटिया बनाई है.”
“किसानों के घर के बगल में मेरी कुटिया है. (दूरी इतनी कम कि) वो बातें करें तो आवाज़ मुझ तक पहुंचे. गुरु खांसे तो उनको पता चल जाए. अब ऐसे में किसी का गला दबोचूं, मुंह दबोचूं और डेढ़ घंटे तक उसके शरीर पर हाथ घुमाऊं और वो चिल्लाती रहे. (हंसते हुए) हे भगवान…ये बच्ची ने नहीं बोला है, उससे बुलवाया गया है.”
आसाराम ने निर्भया केस में कहा था, ”वह अपराधियों को भाई कहकर पुकार सकती थी. इससे उसकी इज्ज़त और जान भी बच सकती थी. क्या ताली एक हाथ से बज सकती है, मुझे तो ऐसा नहीं लगता.”
इसी तर्ज पर आसाराम ख़ुद को अपने प्रवचनों में भक्तों की नज़र में बेगुनाह साबित करने की कोशिश कर रहे थे.
लेकिन 28 अगस्त को ही जोधपुर के पुलिस कमिश्नर बीजू जॉर्ज जोसेफ़ ने कहा, “अगर आसाराम 30 अगस्त तक जोधपुर कोर्ट में पेश नहीं होते हैं तो हम उन्हें गिरफ्तार करने के लिए एक टीम भेजेंगे.”
आसाराम तमाम राजनीतिक दाव-पेंच लगाकर अपनी गिरफ़्तारी टालने में लगे थे.
जब गिरफ़्तार हुए आसाराम
लेकिन अब पुलिस ने आसाराम को पकड़ने के लिए कमर कस ली थी.
जोधपुर पुलिस टीम जब उनसे पूछताछ करने आश्रम पहुंची तो आसाराम ने सत्संग शुरू कर दिया. सत्संग समाप्त होने पर वह आराम करने चले गए. मगर, पुलिस की टीम भी डटी रही.
पुलिस ने आश्रम को पहले से घेर लिया.
वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ के मुताबिक़, दो दिन तक पुलिस के साथ आँख मिचौनी के बाद आसाराम को पुलिस ने शनिवार आधी रात यानी 31 अगस्त 2013 को इंदौर में गिरफ्तार किया था.
जोधपुर पुलिस आसाराम को लेकर जैसे ही इंदौर के आश्रम से बाहर निकली तो आसाराम के सैकड़ों समर्थकों ने उनके समर्थन में और पुलिस के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी करना शुरू कर दिया.
आसाराम इंदौर से ही क्यों पकड़े गए?
पुलिस के मुताबिक़ शनिवार को उनके समर्थकों ने जोधपुर में उत्पात मचाया और मीडियाकर्मियों पर हमला कर दिया था. इसके बाद पुलिस ने सख्ती दिखाई और आश्रम को सील कर दिया.
इसके बाद पुलिस उन्हें आधी रात को इंदौर हवाई अड्डे ले गई.
राम भक्तों ने कैसे छोड़ा आसाराम का साथ
गिरफ़्तारी से पहले आसाराम ने कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी ‘उनके ख़िलाफ़ साज़िश रच रहे’ हैं.
जब पत्रकारों ने उनसे ये पूछा कि क्या भाजपा नेता उमा भारती आपका बचाव कर रही हैं तो आसाराम बापू भड़क उठे थे.
हालांकि, उमा भारती ने आसाराम के समर्थन में ट्वीट करके अपना रुख स्पष्ट किया था.
लेकिन आसाराम के 2300 करोड़ रुपए का साम्राज्य उन्हीं राज्यों में बना है जहां बीते कई सालों से बीजेपी की सरकारे रही हैं. ये राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात हैं.
और आसाराम के भक्तों में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ-साथ लालकृष्ण आडवाणी, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह जैसे नेता रहे हैं.
लेकिन ऐसा नहीं है कि उनके भक्तों में सिर्फ़ भाजपाई नेता ही शामिल हों. कांग्रेस के दिग्विजय सिंह, कमल नाथ और मोतीलाल वोरा भी उनके भक्त रहे हैं.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आसाराम के प्रवचन में शामिल होते हुए कहा था, “मेरा सौभाग्य रहा है कि जीवन में जब कोई नहीं जानता था, उस समय से बापू का आर्शीवाद मुझे मिलता रहा हैं, स्नेह मिलता रहा है. आज भी स्नेह मिल रहा है. मैं मानता हूं कि बापू के शब्दों में एक यौगिक शक्ति रहती है. मैं बापू के श्री चरणों में वंदन करता हूं.”
गिरफ़्तारी से पहले आश्रम के अंदर से बापू ने बार-बार कहा, “मध्य प्रदेश सरकार दबाव में है.”
वहीं, 27 अगस्त को जब पुलिस बाहर आसाराम का इंतज़ार कर रही थी तो स्थानीय भाजपा विधायक रमेश मेंदोला भी आसाराम के साथ बैठे थे.
लेकिन समय बदला और राजनेताओं, विशेषकर भाजपा ने आसाराम से दूरी बनानी शुरू कर दी.
जब आसाराम ने कहा – मैं तो नपुंसक हूं, बलात्कार कैसे करूंगा?
पुलिस की शुरुआती जांच में आसाराम ने दावा किया कि वह तो नपुंसक हैं.
लेकिन इसके बाद जब उनका पोटेंसी (मर्दानगी) टेस्ट कराया गया तो उनका ये दावा पूरी तरह झूठा पाया गया.
इसके बाद कई बार उन्होंने तबीयत ख़राब होने की बात करके ज़मानत लेने की कोशिश की, लेकिन उन्हें ज़मानत न मिल सकी.
आसाराम को सर्जरी की ज़रूरत नहीं
गवाहों की हत्या का मामला
28 फ़रवरी 2014 की सुबह आसाराम और उनके बेटे नारायण साईं पर बलात्कार का आरोप लगाने वाली सूरत निवासी दो बहनों में से एक के पति पर सूरत शहर में ही जानलेवा हमला हुआ.
15 दिन के भीतर ही अगला हमला राकेश पटेल नामक आसाराम के वीडियोग्राफ़र पर हुआ. दूसरे हमले के कुछ दिनों बाद ही दिनेश भगनानी नामक तीसरे गवाह पर सूरत के कपड़ा बाज़ार में तेज़ाब फेंका गया.
यह तीनों गवाह ख़ुद पर हुए इन जानलेवा हमलों के बाद भी बच गए. इसके बाद 23 मई 2014 को आसाराम के निजी सचिव के तौर पर काम कर चुके अमृत प्रजापति पर चौथा हमला किया गया.
पॉइंट ब्लांक रेंज से सीधे गर्दन पर मारी गई गोली के ज़ख़्म से 17 दिन बाद अमृत की मृत्यु हो गई.
अगला निशाना आसाराम मामले पर कुल 187 खबरें लिखने वाले शाहजहांपुर के पत्रकार नरेंद्र यादव पर साधा गया.
अज्ञात हमलावरों ने उनकी गर्दन पर हंसुए से 2 वार किए, लेकिन 76 टाकों और तीन ऑपरेशन के बाद नरेंद्र को एक नई ज़िंदगी मिली.
जनवरी 2015 में अगले गवाह अखिल गुप्ता की मुज़फ्फरनगर में गोली मारकर हत्या कर दी गई.
ठीक एक महीने बाद आसाराम के सचिव के तौर पर काम कर चुके राहुल सचान पर जोधपुर अदालत में गवाही देने के तुरंत बाद अदालत परिसर में ही जानलेवा हमला हुआ.
राहुल उस हमले में तो बच गए पर 25 नवंबर 2015 से आज तक लापता हैं.
इस मामले में आठवाँ सनसनीखेज़ हमला 13 मई 2015 को गवाह महेंद्र चावला पर पानीपत में हुआ.
हमले में बाल-बाल बचे महेंद्र आज भी आंशिक विकलांगता से जूझ रहे हैं.
इस हमले के तीन महीनों के भीतर जोधपुर मामले में गवाह 35 वर्षीय कृपाल सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई.
अपनी हत्या से कुछ ही हफ्ते पहले उन्होंने जोधपुर कोर्ट में पीड़िता के पक्ष में अपनी गवाही दर्ज करवाई थी.
बीते 5 सालों में सुनवाई के दौरान आसाराम ने ख़ुद को बचाने के लिए देश के सबसे बड़े, महंगे और नामी वकीलों का सहारा लिया.
आसाराम के बचाव में अलग-अलग अदालतों में बचाव के साथ-साथ बेल की अर्जियां लगाकर लड़ने वाले वकीलों में राम जेठमलानी, राजू रामचंद्रन, सुब्रमण्यम स्वामी, सिद्धार्थ लूथरा, सलमान ख़ुर्शीद, केटीएस तुलसी और यूयू ललित जैसे नाम शामिल हैं.
आज तक अलग-अलग अदालतों ने आसाराम की ज़मानत की अर्जियां कुल 12 बार ख़ारिज की हैं.
गुजरात से हुई शुरुआत और वहीं पहला अपराध
1972 में आसाराम ने अहमदाबाद से लगभग 10 किलोमीटर दूर मुटेरा कस्बे में साबरमती नदी के किनारे अपनी पहली कुटिया बनाई.
यहाँ से शुरू हुआ आसाराम का आध्यात्मिक प्रोजेक्ट धीरे-धीरे गुजरात के अन्य शहरों से होता हुआ देश के अलग-अलग राज्यों में फ़ैल गया.
शुरुआत में गुजरात के ग्रामीण इलाक़ों से आने वाले ग़रीब, पिछड़े और आदिवासी समूहों को अपने ‘प्रवचनों, देसी दवाइयों और भजन कीर्तन’ की तिकड़ी परोस कर लुभाने वाले आसाराम का प्रभाव धीरे-धीरे राज्य के शहरी मध्यवर्गीय इलाक़ों में भी बढ़ने लगा.
आसाराम ने अपने बेटे नारायण साईं के साथ मिलकर देश विदेश में फैले अपने 400 आश्रमों का साम्राज्य खड़ा कर लिया.
काम नहीं आए भक्तों के यज्ञ-हवन और प्रार्थनाएं
आसाराम की गिरफ़्तारी से लेकर अब 25 अप्रैल को उनके ख़िलाफ़ बलात्कार मामले में अदालत का फ़ैसला आने तक उनके भक्तों ने तमाम तरह से अपने बापू को जमानत दिलाने की कोशिशें कीं. सोशल मीडिया से लेकर सड़कों पर प्रदर्शन किए गए.
लेकिन इस सबके बावजूद आसाराम को तमाम कोशिशों के बावजूद जमानत नहीं मिल सकी.
first Published On BBC