क्या प्रधानमंत्री मोदी के अनशन से राहुल मान जाएंगे ?

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Kumar Prem ji, Senior Editor, TRP
अनशन अब ट्रेंड बनता जा रहा है। तो गलत क्या है? अनशन करना यानी खुद को तकलीफ़ देना। अपने लिए या जनता के लिए अधिकार की लड़ाई लड़ने का इससे अधिक लोकतांत्रिक तरीका क्या हो सकता है कि इंसान खुद को भूखा रखे। इससे बड़ा लोकतांत्रिक हथियार हो ही नहीं सकता।

मगर, यह हथियार कैसे है? अनशन तभी हथियार है जब इसमें निस्वार्थ भाव, परोपकार की इच्छा और जनहित जैसी भावनाओं के बारूद हों। अगर ऐसा होता है तो अनशन करने वाला प्रतीक बन जाता है। जनता की इच्छाएं इस अनशन के साथ हो जाती हैं। उस स्थिति में अगर अनशनकारी की जान चली गयी, तो जनता उबल पड़ती है और सरकारें तहस-नहस हो जाती हैं। उसी स्थिति की कल्पना से सरकार अनशन से डरती है, अनशनकारियों से ख़ौफ़ खाती है।

क्या राहुल-मोदी एक-दूसरे का अनशन तुडवाएंगे

क्या आज कोई कल्पना कर सकता है कि नरेंद्र मोदी अनशन करें और राहुल गांधी आकर उनकी पूरी मांगें मान लें? संसद का बर्बाद हुआ सत्र आगे नहीं बर्बाद होगा इसका कोई भरोसा राहुल दे दें। या फिर राहुल गांधी अनशन करें और नरेंद्र मोदी आकर यह भरोसा दें कि सरकार दलितों पर अत्याचार नहीं होने देगी। आप कृपया अपना अनशन तोड़ें। आप ऐसी कल्पना नहीं कर सकते। जब तक ऐसी स्थिति पैदा नहीं होती नरेंद्र मोदी या राहुल के अनशन का भी कोई मतलब नहीं होता।

जतीन्द्रनाथ दास पहले अनशनकारी शहीद

आज़ादी से पहले अनशन करते हुए शहीद होने वाले जतीन्द्र नाथ दास को कौन भुला सकता है। उन्होंने भारतीय और अंग्रेजी कैदियों में भेदभाव के ख़िलाफ़ दो बार अनशन किए। एक बार 20 दिनों और दूसरी बार 63 दिनों का। दूसरा अनशन उनकी ज़िन्दगी का आखिरी अनशन साबित हुआ। दोनों ही अनशन आमरण थे। यानी जब तक कि मौत न हो जाए। पहले अनशन के बाद जेल अधीक्षक ने दुर्व्यवहार के लिए माफी मांग ली थी इसलिए अनशन टूटा था। दूसरे अनशन पर प्रशासन ने उनकी बात नहीं मानी। जतीन्द्र नाथ दास की मौत लाहौर जेल में हुई, मगर उनकी मौत का असर पूरे हिन्दुस्तान के स्वतंत्रता आंदोलन पर पड़ा।

गांधीजी ने अनशन कर कलकत्ता में दंगे को बंद कराने में सफलता हासिल की थी। यह उपलब्धि अनशन की महत्ता को स्थापित करता है।

अनशन सरकार के ही ख़िलाफ़ नहीं हुआ करते। अनशन दंगाइयों का भी दिल जीत लेते हैं। यह करिश्मा महात्मा गांधी ही कर सकते थे। आज़ादी के बाद जब दोनों ओर हिंसा और दंगा का घिनौना खेल चल रहा था। तब महात्मा गांधी ने कोलकाता में अनशन कर दंगा रोकने में कामयाबी हासिल की थी। यह उदाहरण गांधी की ज़िन्दगी को बेशकीमती बनाता है, सही मायने में अमूल्य बनाता है।

गांधीजी की ज़िन्दगी को जनता ने अमूल्य बनाया

गांधीजी अनशन इसलिए करते थे क्योंकि जनता उनकी अनशन सुनती थी। सरकार उनके अनशन से डरती थी। पूना पैक्ट को कौन भुला सकता है। महात्मा गांधी की जान की फिक्र करते हुए बाबा साहब अम्बेडकर ने उनकी सारी मांगें मान ली और अपनी सारी जिद छोड़ दी।

अनशन सिर्फ इसलिए भी नहीं होता कि एक मकसद पूरा न हो तो अनशन ही व्यर्थ हो जाए। अनशन चूकि आंदोलन का हथियार है इसलिए इसका इस्तेमाल जनता को जागरूक करने में होता है। बस इसी छोर को पकड़कर नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी अनशन के रास्ते पर चल पड़े हैं। इसमें गलत कुछ भी नहीं है। यह ट्रेंड डेवलप करे तो आवाज़ बुलन्द होगी। धीरे-धीरे अनशन के मायने ज़िन्दा होने लगेंगे और इसके प्रभाव में भी बढ़ोतरी होगी।

शर्मिला इरोम ने दुनिया में सबसे लम्बे समय तक यानी 16 साल तक अनशन किया। आखिरकार बगैर मांग पूरी हुए उन्होंने इसे तोड़ दिया। जनता के बीच जाने का फैसला किया, मगर चुनाव में भी उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।

शर्मिला इरोम का ज़िक्र किए बगैर अनशन पर बात पूरी नहीं हो सकती। मानव सभ्यता के इतिहास में 16 साल लम्बा अनशन करने वाली शर्मिला इरोम बेमिसाल हैं। उनके रहते क्या कांग्रेस, क्या बीजेपी और क्या कम्युनिस्ट या दूसरी पार्टियां किसी मजाल नहीं कि अनशन की बात करें। इन सबमें किसी ने भी अगर शर्मिला इरोम के अनशन का साथ दिया होता तो उनका अनशन अपने मकसद को पा सकता था। अफस्पा कानून को वापस लेने की मांग ही तो करती रही शर्मिला इरोमा। आखिरकार अनशन छोड़कर चुनाव के मैदान में वह कूदीं और वहां भी वह निराश हुईं। इससे पता चलता है कि मणिपुर की आवाज़ को सुनने में हिन्दुस्तान की राजनीतिक पार्टियों और सरकारों की कोई रुचि नहीं रही।

अन्ना ने गिरते स्वास्थ्य के बावजूद तब तक अनशन जारी रखा जब तक कि सरकार ने उनकी मांगें मान नहीं ली।

अनशन की ज़रूरत, उसका मकसद, उसका असर सबकुछ इस बात पर निर्भर करता है कि अनशनकारी जनता के साथ कितना कनेक्ट है। अगर जनता के साथ वह जुड़ा हुआ नहीं है तो सरकारें उनको नहीं सुना करतीं। जनता अगर साथ है तो अनशन अन्ना आंदोलन बन जाता है। जनता अगर साथ नहीं है तो अनशन का हश्र शर्मिला इरोम के अनशन की तरह हो जाता है।
(first Published On UCnewsApp.)

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