Court: Abhimanyu Saha for BBC
बिहार इन दिनों झुलस रहा है. एक के बाद एक कई शहर हिंसा की चपेट में आ रहे हैं.
भागलपुर से शुरू हुई हिंसा धीरे-धीरे अपने पैर पसारते हुए औरंगाबाद, समस्तीपुर, मुंगेर होते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह ज़िले नालंदा तक पहुँच गई. शुक्रवार को नवादा जिले से भी हिंसा की ख़बरें आईं.
साल 1989 में हुए भागलपुर दंगों के बाद छिटपुट घटनाओं को छोड़ कमोबेश बिहार ने साम्प्रदायिक हिंसा का दौर नहीं देखा… चाहे नीतीश कुमार की सरकार रही हो या लालू प्रसाद यादव की. दोनों के शासनकाल में साम्प्रदायिक सौहार्द का माहौल बना रहा.
यह पहली बार है जब क़ानून-व्यवस्था पर समझौता नहीं करने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बेबस दिख रहे हैं.
रामनवमी के मौके पर विभिन्न शहरों में निकाली गई शोभा यात्राओं के बाद राज्य का साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ा है.
दंगा प्रभावित इलाक़ा पुलिस छावनी में तब्दील हो चुका है और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं.
सवाल उठता है कि आख़िर बिहार में दंगे क्यों हो रहे हैं और नीतीश सरकार इस पर लगाम लगाने में असमर्थ क्यों दिख रही है?
चुनावी तैयारी?
वरिष्ठ पत्रकार और बिहार की राजनीति पर नज़र रखने वाले राजेंद्र तिवारी इस पूरे मामले को 2019 की चुनावी तैयारी की तरह देखते हैं.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, “नीतीश कुमार ने साल 2005 से 2013 तक भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार चलाई. लेकिन उन्होंने कभी भी कानून व्यवस्था से समझौता नहीं किया.”
“भाजपा से अलग होने के बाद भी काँवड़ यात्रा के दौरान दंगे भड़काने की कोशिशे हुई थीं, पर प्रशासन कड़ाई से उससे निपटती रही. लेकिन पहली बार ऐसा हो रहा है कि वही भाजपा है, वही नीतीश कुमार हैं पर कार्रवाई नहीं की जा रही.”
दंगा ही विकल्प क्यों?
जिस राज्य में लाल कृष्ण आडवाणी का रथ रोका गया था. जहाँ का माहौल बाबरी मस्जिद के तोड़े जाने के बाद भी नहीं बिगड़ा, वहां दंगा क्यों हो रहा है या फैलाया जा रहा है?
इस सवाल पर पटना विश्वविद्यालय के राजनीतिक शास्त्र के प्रोफ़ेसर डॉ. राकेश रंजन कहते हैं, “अगर आप वर्तमान केंद्र सरकार की उपलब्धियों की बात करें तो पिछले क़रीब तीन सालों में जनता को कुछ ख़ास नहीं मिला. सामान्य जनता या तो रोजगार चाहती है या फिर महंगाई पर नियंत्रण.”
“लेकिन अगर आप ग़ौर करें तो जनता को वैसा कुछ नहीं मिला. तो फिर ये साफ़ है कि इस तरह के दंगे कहीं न कहीं चुनाव को नज़र में रखकर किए जा रहे हैं.”
वो बताते हैं कि बिहार की सामाजिक स्थिति दूसरे राज्यों से बिल्कुल अलग है. यहाँ का हिंदू समाज बंटा हुआ है.
डॉ. राकेश रंजन आगे कहते हैं, “बिहार में जाति व्यवस्था इतनी मज़बूत है कि यहाँ साम्प्रदायिकता कमज़ोर पड़ जाती है. जाति समीकरण में या तो लालू को फ़ायदा होगा या फिर नीतीश को. लेकिन जब वोट बँटने का आधार समुदाय और धर्म हो तो फ़ायदा भाजपा को होता दिखता है.”
क्या साजिश के तहत ऐसा हो रहा है?
बिहार में ये भी पहली बार हुआ है कि रामनवमी पर इतनी बड़ी संख्या में शोभा यात्राएं निकाली गई हैं.
सिर्फ़ रामनवमी के दिन ही नहीं, उसके अगले तीन दिनों तक कई ज़िलों में जुलूस का आयोजन किया गया.
नीतीश कुमार के गृह ज़िले नालंदा के निवासी और शिक्षक विकास मेघल कहते हैं, “जहाँ तक मुझे याद है, पिछले दो सालों से शोभा यात्राएँ भव्य तरीके से निकाली जा रही हैं. इससे पहले भी शोभा यात्राएं निकली जाती रही हैं लेकिन उनका स्तर इतना बड़ा नहीं होता था. इस तरह की भव्यता का इतिहास नालंदा में कभी नहीं रहा.”
नीतीश सरकार बेबस क्यों?
पहले भागलपुर में हुए दंगे के आरोपी केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत का क़ानून व्यवस्था को चुनौती देना.
इसके बाद विभिन्न शहरों का माहौल बिगड़ना. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बेबसी जिसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि वो अपने गृह ज़िले नालंदा, जहाँ कथित तौर पर उनकी तूती बोलती है, उसे भी हिंसा की आग में जाने से बचा नहीं पाए.
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र तिवारी कहते हैं, “नीतीश कुमार पर भाजपा हावी हो रही है. जिस नालंदा ज़िले में उनका सिक्का चलता था, वहाँ भी इस तरह की घटना हो तो आप समझ सकते हैं कि प्रशासन पर उनकी पकड़ कमज़ोर हुई है.”
वो आगे कहते हैं कि नीतीश कुमार के पास अब कोई विकल्प नहीं है. जिस तरह से उन्होंने राजद से गठबंधन तोड़ा और भाजपा के साथ आए, उसके बाद अब वो कहाँ जाएंगे? वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं. नीतीश कुमार के लिए इधर कुआँ, उधर खाई की स्थिति बनती जा रही है.
नीतीश कुमार का मतलब ही है सुशासन
वहीं, इन सवालों को नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइडेट के नेता श्याम रजक बेतुका करार देते हैं. उन्होंने बीबीसी से कहा, “नीतीश कुमार का मतलब ही है सुशासन. सभी ज़िलों की पुलिस को अलर्ट कर दिया गया है.”
उन्होंने कहा कि ये घटनाएं छिटपुट हो रही हैं, जिस पर सरकार लगाम लगा रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद घटनाओं पर नजर रख रहे हैं.
श्याम रजक कहते हैं, “ऐसे समय में अफवाहें फैलती है. आम लोगों को समझदारी से काम लेना होगा. पुलिस प्रशासन अलर्ट है. किसी तरह की अप्रिय घटना नहीं घटी है.”
नए गठबंधन की सरकार में क्या नीतीश कुमार हिंसा को रोकने में नाकाम रहे हैं, इस सवाल पर श्याम रजक ने कहा कि गठबंधन अपनी जगह है, वो कानून व्यवस्था से कभी समझौता नहीं कर सकते हैं.
वहीं, सरकार में सहयोगी भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय का कहना है कि हिंसा के पीछे राष्ट्रीय जनता दल का हाथ है. उन्होंने आरोप लगाया है कि राजद के लोग सरकार को बदनाम करने के लिए साजिश रच रहे हैं.