क्या ‘खास’ तरह की हिंसा से मुसलमानों को उकसाया जा रहा है ?
#Bihar,BengalRiots!

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Fact Courtesy: Dilnawaj Pasha
Pic Courtesy: V4U Voice
देश के कई शहरों में चुन-चुन कर दुकानों में आग लगाने और तोड़फोड़ की घटनाओं में बहुत सारी बातें ऐसी हैं जो सब जगह एक जैसी हैं.

पिछले कुछ दिनों में बिहार और बंगाल में हिंसा और तनाव की लगभग दस घटनाएँ हुईं, इन सभी घटनाओं में एक ख़ास तरह का पैटर्न दिखता है. यही वजह है कि इन्हें स्थानीय कारणों से ख़ुद-ब-ख़ुद शुरू हुआ बवाल मानना मुश्किल है.

सभी जगह बवाल की शुरुआत से लेकर अंजाम तक एक जैसा है, हिंसा करने वाले और उसके शिकार भी सभी शहरों में एक जैसे ही हैं. कहने का मतलब ये है कि इस तरह की हिंसा और आगज़नी बिना सुनियोजित, संगठित और नियंत्रित हुए मुमकिन नहीं है.

बिहार और बंगाल के कई शहरों में रामनवमी के जुलूस के बाद हिंसा हुई और बीसियों दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया.

इन सभी मामलों में 10 ऐसी बातें हैं जो हर जगह कमोबेश एक जैसी हैं जिससे ये लगता है कि यह एक साज़िश है, न कि अलग-अलग शहरों में हुई छिटपुट हिंसा की घटनाएँ.

उग्र जुलूस, युवा, झंडे, बाइक…
बिहार में सांप्रदायिक तनाव और मुसलमानों के ख़िलाफ़ हमले का सिलसिला पिछले महीने 17 मार्च से शुरू हुआ था. 17 मार्च को केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित चौबे ने भागलपुर में हिन्दू नववर्ष पर एक शोभायात्रा निकाली थी.

इसके बाद रामनवमी तक औरंगाबाद, समस्तीपुर के रोसड़ा और नवादा जैसे शहर सांप्रदायिक नफ़रत की चपेट में आए. सभी शहरों में रामनवमी के उग्र जुलूस निकाले गए. जुलूस में बाइक सवार युवा और माथे पर भगवा परचम अनिवार्य रूप से थे. इसके साथ ही मोटरसाइकिल में भगवा झंडे भी बंधे थे.

अपवाद के तौर पर रोसड़ा के जुलूस में बाइक नहीं थी, लेकिन इसमें शामिल लोग काफ़ी उग्र थे और हाथों में भगवा झंडे थे. हिंदू नववर्ष का जुलूस एक नया आविष्कार है. रामनवमी का जुलूस भी कई शहरों में अब से पहले कभी नहीं निकलता था.

पिछले साल यूपी के सहारनपुर में तो राणा प्रताप जयंती के नाम पर जुलूस निकाला गया था जिसके बाद दलितों को हिंसा का निशाना बनाया गया, मेवाड़ के राणा प्रताप की जयंती का जुलूस सहारनपुर में बिल्कुल नई चीज़ थी.

जुलूस के आयोजक…तरह तरह के संगठन
सभी शहरों में जुलूस के आयोजक एक जैसे विचारों वाले संगठन थे. इनके नाम भले अलग थे लेकिन सत्ताधारी बीजेपी के अलावा, आरएसएस और बजरंग दल के तार इनसे जुड़ते हैं. औरंगाबाद और रोसड़ा में तो बीजेपी और बजरंग दल के नेता सीधे तौर पर शामिल थे.

औरंगाबाद के जुलूस में शहर के बीजेपी सांसद सुशील सिंह, बीजेपी के पूर्व विधायक रामाधार सिंह और हिन्दू युवा वाहिनी के नेता अनिल सिंह शामिल थे. अनिल सिंह को गिरफ़्तार भी किया गया है.

रोसड़ा में भी बीजेपी और बजरंग दल के नेताओं के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई है. भागलपुर में तो केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे ही शामिल थे.

इस दौरान कुछ नए हिन्दुवादी संगठनों का भी जन्म हुआ और इन्होंने जुलूस में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया. भागलपुर में ‘भगवा क्रांति’ और औरंगाबाद में ‘सवर्ण क्रांति’ मोर्चा का जन्म हुआ. सांप्रदायिक झड़प के बाद इन दोनों संगठनों के नेता मिलने और बात करने को तैयार नहीं हुए.

इसके साथ ही पश्चिम बंगाल आसनसोल में भी रामनवमी के जुलूस को बीजेपी का समर्थन हासिल था. आसनसोल में हिन्दुओं की भी दुकानों और घरों में आग लगाई गई. हालांकि यहां भी रामलीला के जुलूस के दौरान ही सांप्रदायिक तनाव फैला. यहां से हिन्दू भी अपने घर छोड़कर भागने पर मजबूर हुए.

ख़ास रूट से जाने की ज़िद
सभी शहरों में मुस्लिमों की घनी आबादी वाले इलाक़ों में जाने की जिद की गई. नवादा में रामनवमी से पहले ज़िला प्रशासन से शहर के धार्मिक नेताओं को बुलाकर एक शांति बैठक कराई और उसमें प्रस्ताव रखा कि जुलूस के दौरान मुस्लिम इलाक़ों में ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ के नारे से परहेज किया जाए तो बीजेपी ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई.

यहाँ तक कि नवादा के सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि “पाकिस्तान मुर्दाबाद का नारा भारत में नहीं लगेगा तो कहां लगेगा”? औरंगाबाद, रोसड़ा और भागलपुर और आसनसोल में भी ऐसा ही हुआ. स्थानीय लोगों का कहना है कि जुलूस का रूट जानबूझकर घनी आबादी वाला मुस्लिम इलाक़ा चुना गया.

हालांकि आसनसोल की घटना में मुस्लिम इलाक़ों में रह रहे हिंदु परिवार भी चपेट में आ गए और हिंदुओं को भी अपना घर छोड़कर बाहरी इलाक़ों में शरण लेना पड़ा.

बिहार में सांप्रदायिक तनाव की एक ख़ास बात यह भी थी कि यह लगभग एकतरफ़ा था. रोसड़ा में मस्जिदों पर हमले को लेकर समस्तीपुर ज़िला बीजेपी प्रमुख रामसुमिरन सिंह ने बीबीसी से कहा कि इसे दंगा नहीं कह सकते क्योंकि इसमें मुसलमान शामिल नहीं थे.

एक बात यह भी ख़ास थी कि सभी शहरों में पांच से छह घंटों के भीतर हालात पर काबू पा लिए गए. इस मामले में नवादा अपवाद था क्योंकि यहां पत्थरबाजी दोनों तरफ़ से हुई थी.

भड़काने वाले नारे और डीजे
जहां-जहां भी जुलूस निकाले गए वहां मुसलमानों को ‘पाकिस्तानी’ कहा गया, नारों के साथ डीजे बजाए गए. ‘जब-जब हिन्दू जागा है तब-तब मुस्लिम भागा है’ जैसे नारे लगाए जा रहे थे.
औरंगबाद में क़ब्रिस्तान में भगवा झंडे लगा दिए गए तो रोसड़ा की तीन मस्जिदों में तोड़फोड़ के साथ भगवा झंडे लगा दिए गए. सभी जुलूसों में एक ही कैसेट का इस्तेमाल किया गया. सवाल ये कि रामनवमी और पाकिस्तान विरोधी गानों का क्या मेल है? तो उन्होंने कहा, “हम अपनी देशभक्ति और राष्ट्रवादी सोच को ज़ाहिर करने के लिए कोई भी मौक़ा खाली नहीं जाने देना चाहते. अगर भारत में पाकिस्तान विरोधी गाने नहीं बजेंगे, तो फिर कहाँ बजेंगे.”

औरंगाबाद में भी आरएसएस के एक नेता सुरेंद्र किशोर सिंह ने भी यही बात कही. औरंगाबाद, रोसड़ा और भागलपुर में जुलूस के दौरान अफ़वाह फैली कि मुसलमानों ने चप्पल या पत्थर फेंके हैं. पत्थर या चप्पल फेंके जाने को क्रिया माना गया हालाँकि अभी तक कोई जांच इस मुकाम पर नहीं पहुंची है कि पत्थर या चप्पल किसी ख़ास समुदाय की ओर से फेंके गए.

सीमित हिंसा, चुनकर आगजनी
इन शहरों में कोई व्यापक हिंसा नहीं की गई जिनसे किसी की जान चली जाए. लोगों की जीविका पर हमला बोला गया. औरंगाबाद में जुलूस के बाद हिंसा में 30 दुकानें जला दी गईं. इन 30 दुकानों में 29 मुसलमानों की थीं. ज़ाहिर है मुसलमानों की दुकान को जानबूझकर निशाना बनाया गया.

औरंगाबाद ज़िला प्रशासन का भी कहना है लगभग दुकानें मुसलमानों की होने से ऐसा प्रतीत होता है कि दुकानों में आग लगाने वालों को पता था कि कौन सी दुकान हिन्दू की है और कौन सी मुसलमान की. औरंगाबाद में हिन्दू युवा वाहिनी के नेता अनिल सिंह के घर में भी मुसलमानों की दुकानें थीं लेकिन वो सुरक्षित रहीं.

इन घटनाओं में किसी की जान नहीं गई, लेकिन उनकी जीविका को इस तरह बर्बाद किया गया कि आने वाले लंबे वक़्त तक उन पर इसका गहरा असर रहेगा.

भीड़ में कौन लोग शामिल थे इसे लेकर भी स्थानीय लोगों और प्रशासन का मिलाजुला आकलन है. औरंगाबाद के मुसलमानों का कहना है कि तोड़फोड़ में शामिल ज़्यादातर लोग बाहरी थे. दूसरी तरफ़ भागलपुर और नवादा की भीड़ को स्थानीय बताया जा रहा है.

औरंगाबाद के डीएम राहुल रंजन माहिवाल ने कहा कि तोड़फोड़ में दूसरे राज्य के लोग भी शामिल थे. रोसड़ा के लोगों का कहना है कि भीड़ में स्थानीय और बाहरी दोनों लोग शामिल थे.

प्रशासन की भूमिका
प्रशासन की भूमिका अपवादों को छोड़कर बेबस दर्शक की ही रही है. औरंगाबाद में 26 मार्च के जुलूस में मस्जिद में चप्पल फेंके जाने, क़ब्रिस्तान में झंडे गाड़ने और मुसलमानों के ख़िलाफ़ अपमानजनक नारे लगाए जाने के वाक़ये सामने आए.

इतना सब होने इसके बावजूद अगले दिन 27 मार्च को मुस्लिम इलाकों में जुलूस जाने की अनुमति दी गई. प्रशासन से पूछा तो उनका कहना था कि लिखित वादा किया गया था कि अब कुछ नहीं होगा इसलिए अनुमति दी गई.

नवादा में प्रशासन ने मुस्लिम इलाक़ों में नारा लगाने से परहेज करने का प्रस्ताव रखा तो बीजेपी ने ख़ारिज कर दिया. भागलपुर, रोसड़ा और आसनसोल में भी प्रशासन ने भीड़ के सामने ख़ुद को बेबस पाया.

हालांकि नवादा, भागलपुर और रोसड़ा में मुसलमानों का कहना है कि प्रशासन सतर्क न होता तो परिणाम और घातक हो सकते थे. वहीं औरंगाबाद के पीड़ितों का कहना है कि प्रशासन की नाक तले शहर जलता रहा.

. सोशल मीडिया पर अफ़वाहें
बिहार में जिन शहरों में सांप्रदायिक नफ़रत फैली वहां प्रशासन ने सबसे पहले इंटरनेट को कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया. सोशल मीडिया पर तेजी से अफ़वाहें फैलाई गईं. औरंगाबाद में व्हॉट्सऐप पर अफ़वाह फैलाई गई कि मुसलमानों ने चार दलित हिन्दुओं की हत्या कर दी है.

इसके साथ ही रामनवमी को लेकर यह अफ़वाह फैलाई गई कि मुसमलमानों ने जुलूस पर हमला किया है. आसनसोल में सोशल मीडिया पर बड़े दंगे की अफ़वाह फैला दी गई जिससे लोग अपना घर-बार छोड़कर भागने लगे.

मुसलमानों में आतंक, विजय का वातावरण
इन घटनाओं के ज़रिए मुसलमानों में डर पैदा किया गया. औरंगाबाद में इमरोज़ नाम के व्यक्ति के जूते के शोरूम को दंगाइयों ने जलाकर ख़ाक कर दिया था. उन्होंने खाड़ी के देशों से पैसे कमाकर बिज़नेस शुरू किया था.

अब उन्होंने फ़ैसला किया है वो इस देश में कोई बिज़नेस नहीं करेंगे. वो अपने परिवार के साथ हॉन्गकॉन्ग जाने की तैयारी कर रहे हैं. और शहरों के मुसलमानों का भी कहना है कि वो अपना बिज़नेस समेटने की तैयारी कर रहे हैं. दूसरी तरफ़ इस हिंसा में शामिल हिन्दू युवाओं को लगता है कि यह उनकी विजय है.

भागलपुर में शेखर यादव नाम के एक युवा ने तनकर कहा कि वो ‘ईंट फेंकेंगे तो उसका ऐसा ही जवाब दिया जाएगा.’

First published ON BBC

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