बढ़ती उम्र के साथ और जवान हो रही है वो ..
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Courtsey
6 अप्रैल, 1980 तब के बॉम्बे की एक शाम .. अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा, ‘मैं भारत के पश्चिमी घाट को मंडित करने वाले महासागर के किनारे खड़े होकर यह भविष्यवाणी करने का साहस करता हूं कि अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा।’
ठीक 34 साल बाद 2014 में कमल खिला कि भारतवर्ष का नक्शे केसरिया हो गया .. फर्श से अर्श तक सफर कैसे तय किया… आपको बताते हैं..

अटल युग
पहले राष्ट्रीय अधिवेशन में अटल ने साफ शब्दों में कहा कि जनता पार्टी भले टूट गई, लेकिन जयप्रकाश के सपनों को बीजेपी पूरा करेगी। पार्टी गांधीवादी समाजवाद पर चलेगी.. लेकिन 1984 के चुनावों ने इस सपने को धराशायी कर दिया। पार्टी को लोकसभा में महज दो सीटें मिलीं। वाजपेयी तक अपनी सीट नहीं बचा पाए थे..

इस बीच इंदिरा गांधी की मौत के बाद कांग्रेस प्रचंड बहुमत (404 सीट) से सत्ता में आई .. राजीव गांधी की सरकार में 1986 में राम जन्मभूमि का ताला खुला। इसके बाद 1986 के शाहबानो प्रकरण हुआ जिसने अचानक भारतीय राजनीति में हिंदुत्व और मुस्लिम तुष्टिकरण की आक्रामक राजनीति का दौर शुरू कर दिया। बीजेपी ने यहां से अपना स्टैंड बदला। इससे पहले विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में मंदिर बनाने का आंदोलन शुरू कर दिया था और राम जन्मभूमि का ताला खुलने की प्रतिक्रिया में बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी का गठन हो चुका था..

आडवाणी युग:..
बीजेपी की पीठ पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हाथ था.. अटल की उदार छवि पार्टी को मजबूती नहीं दे पा रही थी। 1986 में पार्टी की कमान आक्रामक नेता लालकृष्ण आडवाणी के हाथों में चली गई। 1987 में तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहेब देवरस के साथ अटल-आडवाणी की बैठक हुई। सवाल उठा कि कांग्रेस कैसे पराजित होगी। तय हुआ कि रास्ता राम मंदिर से निकलेगा। बताते हैं कि अटल इस रास्ते के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं थे, लेकिन आखिरकार चलना इसी राह पर पड़ा। 1989 में बीजेपी ने वीएचपी के राम मंदिर आंदोलन को औपचारिक समर्थन दे दिया और राम मंदिर के मुद्दे पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू हो गया। आडवाणी के नेतृत्व में बीजेपी में उग्र हिंदुत्व का दौर शुरू हो गया..

जब संयुक्त विपक्ष का हिस्सा बनी बीजेपी
1989 के आम चुनावों में बीजेपी को बड़ी कामयाबी हाथ लगी और अकेले दम पर लड़कर उसने 85 सीटें हासिल कीं। इसके बाद पार्टी ने वीपी सिंह की सरकार को अपना समर्थन दिया.. हालांकि यह मेल ज्यादा दिन नहीं टिका। वीपी सिंह ने जब मंडल कमिशन की सिफारिशों को लागू कराने का फैसला लिया, तो बीजेपी को अपने कोर वोटरों के दरकने का खतरा महसूस हुआ.. खटास आनी शुरू ही हुई थी कि इस बीच सितंबर 1990 में राम मंदिर के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा शुरू हो गई.. सितंबर 1990 में जब गुजरात इकाई के सचिव के रूप में मोदी तत्कालीन अध्यक्ष आडवाणी के रथयात्रा कार्यक्रम और उसके मार्गों को औपचारिक विवरण दे रहे थे..

रथयात्रा से दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी बीजेपी
25 सितंबर को शुरू हुई इस यात्रा को 30 अक्टूबर को अयोध्या में समाप्त होना था, लेकिन रथयात्रा थोड़ा लंबा खिंची। नवंबर 1990 में लालू ने ऐलान किया कि आडवाणी रथयात्रा लेकर बिहार में आए तो उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा। आडवाणी को समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। बीजेपी को तो जैसे मौका मिला और उसने वीपी सिंह की सरकार गिरा दी। बीच में 7 महीने के लिए कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर पीएम बने लेकिन 7 महीने बाद हुए 1991 आम चुनावों में आडवाणी की रथयात्रा ने काम कर दिया और बीजेपी ने 120 सीटें जीत लीं। 2 सांसदों वाली पार्टी अब देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी थी।

राष्ट्रवाद की राजनीति
बीजेपी को राम का महत्व समझ आ गया था, लेकिन पार्टी को अब इससे आगे का रास्ता भी दिख रहा था। 1991 में आडवाणी के बाद मुरली मनोहर जोशी पार्टी के अध्यक्ष बन गए थे। बीजेपी ने भारतीय राजनीति में हिंदुत्व के साथ राष्ट्रवाद का तड़का लगाने का फैसला किया और दिसंबर 1991 में जोशी की तिरंगा यात्रा निकली, जिसे 26 जनवरी को श्रीनगर में तिरंगा फैलाकर खत्म होना था। मोदी इस यात्रा के भी सारथी बने थे क्योंकि उन्होंने आडवाणी की यात्रा में बेहतरी प्रबंधन क्षमता का परिचय दिया था..

बाबरी विध्वंस
राम मंदिर आंदोलन के उग्र आंदोलन की परिणति 6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस के रूप में हुई और देश में दंगे भड़क उठे। यूपी के अलावा एमपी, राजस्थान और हरियाणा की बीजेपी सरकारें बर्खास्त कर दी गईं। एक साल बाद इन राज्यों में चुनाव हुए तो राजस्थान छोड़ बीजेपी हर जगह हार गई। हवाला कांड में आडवाणी का नाम आया और उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा देते हुए आरोपों से बरी होने तक चुनाव नहीं लड़ने का फैसला ले लिया। बीजेपी को अंदाजा चल गया कि कांग्रेस को हराने के लिए दूसरे सहयोगियों की भी जरूरत पड़ेगी और एक बार फिर पार्टी ने ‘उदार’ अटल की तरफ देखा। इसके बावजूद बीजेपी फायदे में रही और यह फायदा 1996 में दिखा

अटल ने संभाला गठबंधन और आडवाणी ने संगठन
बीजेपी ने सत्ता तक पहुंचने के लिए गठजोड़ को सीढ़ी बनाया और इसके लिए अटल का चेहरा सामने किया गया। 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 161 सीटें मिलीं और आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस नहीं बल्कि कोई दूसरी पार्टी यानी बीजेपी नंबर 1 बनी। वाजपेयी पीएम बने लेकिन उनकी सरकार केवल 13 दिन ही चली और गिर गई। वाजयेपी ने इस्तीफे की घोषणा से पहले लोकसभा में अपना प्रसिद्ध भाषण दिया। दूरदर्शन के इतिहास में पहली बार किसी कॉन्फिडेंस मोशन को लाइव दिखाया गया। वाजपेयी ने भविष्यवाणी की कि कोई भी सरकार स्थाई नहीं बनेगी। उनकी यह भविष्यवाणी भी सही साबित हुई। इस बीच दो सरकारें (देवेगौड़ा और गुजराल) बनीं और गिरीं। 1998 में मध्यावधि चुनाव हुए और सहयोगी के साथ एनडीए बना बीजेपी ने चुनाव लड़ा और पार्टी अकेले 182 सीटें जीत सबसे बड़ा दल बन गई और सहयोगियों के साथ वाजपेयी ने फिर सरकार बना ली।

एक वोट से सरकार गिरने लेने झटका
वाजपेयी के नेतृत्व में यह सरकार भी नहीं चल पाई। आज राज्यसभा में बीजेपी के सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने सरकार गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने सोनिया गांधी और जयललिता की चाय पर मीटिंग कराई और जयललिता ने वाजपेयी सरकार से समर्थन वापस ले लिया। एक वोट से वाजपेयी सरकार गिर गई। 1999 में फिर से मध्यावधि चुनाव हुए। इसी दौरान करगिल युद्ध हुआ। एक तरफ देश को जीत मिली दूसरी तरफ चुनावों में बीजेपी जीती। सीटें तो 182 ही रहीं लेकिन सहयोगी दलों के साथ वाजपेयी ने फिर सरकार बना ली।

2004 में हाथ से गया केंद्र
वाजपेयी सरकार के इस कार्यकाल में राज्यों में बीजेपी का तेजी से विस्तार हुआ। 2002 में गुजरात के अलावा 2003 में छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी। बीजेपी ने आत्मविश्वास में इंडिया शाइनिंग का नारा दिया। लेकिन पार्टी के लिए यह अति आत्मविश्वास साबित हुआ। 2004 के चुनाव में पार्टी बुरी तरह हारी। बीजेपी को 136 सीटें मिलीं और कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए की सरकार बनी।

जब अटल ने कहा, अब आडवाणी के नेतृत्व में बढ़ेंगे
2004 की हार एक तरह से अटल के राजनीतिक जीवन को खत्म करने वाली साबित हुई। हार के बाद आडवाणी पार्टी के अध्यक्ष बनने के साथ ही नेता विपक्ष भी बने। वाजपेयी ने ऐलान कर दिया कि आडवाणी के नेतृत्व में ही आगे बढ़ेंगे। लेकिन आडवाणी की अगुवाई में पार्टी सवालों से घिरने लगी। पहले उमा भारती ने सार्वजनिक तौर पर सवाल उठाए और पार्टी से निकाली गईं। फिर जिन्ना की मजार में जाकर आडवाणी उन्हें धर्मनिरपेक्ष नेता बता आए। आडवाणी को इस्तीफा देना पड़ा। राजनाथ सिंह नए अध्यक्ष बने।

आडवाणी PM इन वेटिंग ही रह गए
2009 में आडवाणी ही पीएम उम्मीदवार बने, लेकिन बीजेपी न सिर्फ चुनाव हारी बल्कि सीटें 112 तक सिमट गईं। आडवाणी नाकाम होकर पीएम इन वेटिंग का खिताब पा चुके थे। लोकसभा में सुषमा स्वराज और राज्यसभा में जेटली विपक्ष के नेता बनाए जा चुके थे। एक तरह से बीजेपी ने यह अटल-आडवाणी युग की समाप्ति थी।

मोदी-शाह की बारी आई
आडवाणी के कमजोर पड़ते ही बीजेपी में सत्ता के कई केंद्र दिखने लगे थे। इस बीच करप्शन के आरोप लगने के कारण गडकरी को पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा था। गडकरी की जगह राजनाथ सिंह को अध्यक्ष बनाया गया। इधर 2012 में नरेंद्र मोदी ने गुजरात में जीत की हैट्रिक लगा दी। अब उनकी नजर दिल्ली पर थी। 2013 में गोवा अधिवेशन में राजनाथ सिंह ने नरेंद्र मोदी को इलेक्शन कैंपेन कमिटी का चेयरमैन बनाने की घोषणा कर दी। फिर आडवाणी की जाहिर आपत्तियों के बावजूद मोदी को बीजेपी ने पीएम कैंडिडेट बनाया।

2014 के चुनावों के लिए मोदी ने धुंआधार प्रचार किया। अच्छे दिनों के वादे किए। सबका साथ, सबके विकास की बात कही। मोदी ने देश से 300 से अधिक सीटें मांगी। देश ने 300 तो नहीं लेकिन 282 सीटें देकर 1984 के बाद फिर एक बार पूर्ण बहुमत की सरकार बना दी। 2 पार्टी वाली बीजेपी 2014 में अकेले दम पर सत्ता बनाने की ताकत वाली हो गई। मोदी ने एक बार फिर करिश्माई नेतृत्व की ताकत को सच किया।

पूर्वोत्तर में बजा डंका
2014 के चुनावों के बाद बीजेपी ने महाराष्ट, हरियाणा और झारखंड और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में सरकार बनाई। चारों ही राज्यों में कांग्रेस सत्ता में भागीदार थी। हरियाणा में वह अपने बूते सरकार चला रही थी और बाकी तीनों राज्यों में उसकी गठबंधन की सरकार थी। हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में बीजेपी कांग्रेस से कुर्सी छीनने में सफल रही, जबकि जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ उसकी गठबंधन की सरकार है। 2016 में बीजेपी ने पूर्वोत्तर में विजयनाद किया। असम से कांग्रेस को सत्ता में बेदखल किया।

2017 के शुरू में 5 राज्यों में चुनाव हुए, जिसमें से पंजाब में कांग्रेस ने अकाली-बीजेपी को धूल चटाई, लेकिन उत्तराखंड और मणिपुर उसे बीजेपी के हाथों गंवानी पड़ी। वैसे, गोवा और मणिपुर में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन सरकार बनाने में बीजेपी कामयाब रही। यूपी विधानसभा चुनावों में मोदी-शाह के नेतृत्व में बीजेपी ने एसपी-बीएसपी-कांग्रेस को परास्त कर प्रचंड बहुमत से योगी की ताजपोशी कराई। गुजरात में बीजेपी एक बार फिर अपना गढ़ बचाने में कामयाब रही, जबकि हिमाचल प्रदेश में उसने कांग्रेस को हरा सरकार बनाई।

पूर्वोत्तर में भी लहराया परचम
इस साल त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय चुनाव भी बीजेपी के लिए खुशखबरी लेकर आए। त्रिपुरा में बीजेपी ने 25 साल पुरानी वामपंथी सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया। वहीं, नगालैंड और मेघालय में भी बीजेपी गठबंधन के साथ सरकार बनाने में सफल रही। मेघालय में इससे पहले कांग्रेस पार्टी की सरकार थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक सीटें जीतने के बाद भी कांग्रेस सरकार बनाने में असफल रही।

राजनीतिक दलों के हिसाब से भारत का नक्शा देखें तो तस्वीर भगवा नजर आती है। हालांकि 2014 के बाद से हुए लोकसभा के अधिक उपचुनावों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है। गुजरात में भी कांग्रेस ने बीजेपी को अच्छी चुनौती दी है। मई में कर्नाटक के चुनाव होने हैं और 2019 से पहले राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में भी रण सजना है। विपक्ष दलितों, अल्पसंख्यकों के मुद्दे को लेकर हमलवार है। बैंकिंग घोटाले और किसानों के मुद्दों पर मोदी सरकार घिरती दिख रही है। ऐसे में बीजेपी के सामने चुनौती है कि वह 2019 में भी ब्रैंड मोदी को कैसे कायम रखेगी…

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