यूपी, बिहार से महाराष्ट्र तक .. क्या एनडीए की ‘गांठ’ खुल रही है ?

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Team TRP

उत्तर प्रदेश और बिहार के उपचुनावों में भाजपा के लिए बुरे नतीजों से कयास लगने शुरू हो गए हैं कि आम चुनाव अप्रैल-मई 2019 में होंगे या इसी साल अक्टूबर-नवंबर में ही मिजोरम, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव के साथ करा लिए जाएंगे.. भाजपा में यह चर्चाएं भी हैं कि अगर राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और मध्य प्रदेश विधानसभाओं के चुनावी नतीजे पक्ष में नहीं रहे तो लोकसभा चुनाव को संभालना मुश्किल हो जाएगा, इसलिए एक साथ ही चुनाव करा लेना ठीक होगा .. हालांकि कुछ कह रहे हैं कि पहले कर्नाटक चुनाव नतीजे देख लिए जाएं ..
हालांकि अगले आम चुनाव जब भी हों, राजनीतिक दलों के बीच उसकी मोर्चेबंदी शुरू हो गई है। नई दिल्ली में कांग्रेस के महाधिवेशन में यूपीए को नए सिरे से खड़े करने की जोड़तोड़ शुरू हो गई है। उधर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री, तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री, टीआरएस के नेता के. चंद्रशेखर राव क्षेत्रीय दलों को जोड़कर तीसरे मोर्चे के गठन की कवायद में जुटते नजर आ रहे हैं..
दूसरी तरफ, केंद्र और तकरीबन 21 राज्यों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में बिखराव दिखने लगा है..
दो सप्ताह पहले तक देश का की राजनीति कुछ और ही दिख रही थी .. त्रिपुरा में भाजपा की ऐतिहासिक जीत,हुई .. मेघालय और नगालैंड में भी जोड़-तोड़कर सरकार बनी ..अमित शाह उत्साह में कह रहे थे कि पूर्वोंत्तर की जीत 2019 के लोकसभा आम चुनाव का ट्रेलर है और अब कर्नाटक में भी उनकी पार्टी की जीत पक्की है। लेकिन बयान के दो सप्ताह बाद ही उत्तर प्रदेश और बिहार के उपचुनावों के नतीजे आए .. और बीजेपी, आरएसएस परेशान हो गए .. कहने के लिए तो अभी एनडीए के साथ तकरीबन 40 छोटे बड़े राजनीतिक दल हैं लेकिन इनमें से अधिकतर लोकसभा में एक से शून्य उपस्थिति वाले दल ही हैं। जो बड़े हैं, वे या तो एनडीए से अलग हो चुके हैं या फिर भाजपा से राजनीतिक सौदेबाजी में लगे हैं।
भाजपा अभी तक इस उधेड़बुन में लगी है कि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के राजनीतिक गढ़ गोरखपुर और फूलपुर सीटें उनके हाथ से निकल कैसे गईं। फूलपुर में तो 1952 के बाद पहली बार 2014 में ही भाजपा के केशव मौर्य चुनाव जीत सके थे लेकिन गोरखपुर तो पिछले तीन दशकों से गोरखनाथ पीठ के महंत अवैद्यनाथ और उनके उत्तराधिकारी आदित्यनाथ की झोली में ही रहा है। गोरखपुर और फूलपुर में संभावित हार को टालने के लिए क्या कुछ नहीं किया गया.. मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री बनने के ठीक छह महीने पूरा होने पर सांसदी छोड़ी गई। चुनाव आयोग ने भी उनके त्यागपत्र के ठीक छह महीने बाद उपचुनाव कराया..
बिहार की अररिया लोकसभा और जहानाबाद विधानसभा उपचुनावों में बीजेपी और नीतीश कुमार को झटका मिला .. अररिया से राजद के पूर्व सांसद दिवंगत मोहम्मद तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम ने बीजेपी के प्रदीप सिंह को हराया .. उपचुनाव से पहले सरफ़राज़ जद (यू) के विधायक थे जो बाद में आरजेडी की टिकट पर चुनाव लड़े .. जबकि जहानाबाद में आरजेडी के पूर्व विधायक दिवंगत मुंद्रिका सिंह यादव के पुत्र सुदय यादव ने जद (यू) के अभिराम शर्मा को हराया .. एक और विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की रिंकी पांडेय ने अपने पति के निधन से खाली हुई भभुआ सीट पर कांग्रेस के शंभु पटेल को शिकस्त दी .. बिहार के तीनों उपचुनाव नीतीश कुमार के राजद, जद (यू) और कांग्रेस के महागठबंधन से अलग होने और भाजपा के साथ एक बार फिर सरकार साझा करने के बाद हुए थे.. तीनों उपचुनावों में न सिर्फ भाजपा बल्कि नीतीश कुमार की राजनीतिक प्रतिष्ठा भी दांव पर थी, उन्हें यह साबित करना था कि बिहार विधानसभा का पिछला चुनाव उन्होंने लालू प्रसाद और कांग्रेस के सहारे नहीं बल्कि खुद अपने बूते जीता था.. लेकिन वो नाकाम रहे ..
सोनिया की सक्रियता
इस बीच यूपीए चेयरपर्सन और सोनिया गांधी की डिनर पार्टी में छोटे-बड़े 21 विपक्षी दलों के नेताओं या उनके प्रतिनिधि जमा हुए .. उससे पहले एनसीपी नेता शरद पवार के यहां विपक्ष के नेताओं की बैठक हुई। संसद के दोनों सदनों में विपक्ष लामबंद दिखा। यूपी में कभी एक-दूसरे को फूटी आंख भी नहीं सुहाने वाले अखिलेश यादव और मायावती के बीच गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनावों के दौरान और नतीजों के बाद भी राजनीतिक रिश्तों की केमिस्ट्री गाढ़ी हो रही है।
एनडीए में भाजपा के बाद सबसे बड़ी और पुरानी सहयोगी शिवसेना के अगला चुनाव एनडीए से अलग होकर अपने बूते लड़ने की घोषणा हुई .. जिसके बाद दूसरे सबसे बड़े घटक तेलुगु देशम पार्टी के केंद्र और राज्य में भाजपा और एनडीए से भी नाता तोड़ लिया।
बिहार में महादलितों के नेता जीतनराम मांझी के ‘हम’ के एनडीए से नाता तोड़ने के बाद राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा और उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव, भासपा नेता ओम प्रकाश राजभर के भी सुर बदलने लगे।
संसद भवन परिसर में आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य का दर्जा या फिर विशेष आर्थिक पैकेज की मांग कर रहे टीडीपी के सांसदों के साथ मंच साझा कर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि सत्ता में आने पर वे सबसे पहले आंध्र प्रदेश को विशेष आर्थिक पैकेज देंगे।
आंध्र प्रदेश में टीडीपी के साथ ही राज्य में दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत वाइएसआर कांग्रेस भी मोदी सरकार के खिलाफ़ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश करने पर आमादा है।
इसके अलावा तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव द्वारा गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी तीसरे मोर्चे के गठन की पहल और इस इरादे से ममता बनर्जी से मुलाकात, भाजपा के भीतर नेताओं-सांसदों के असंतुष्ट स्वरों में लगातार वृद्धि, महाराष्ट्र के तकरीबन 50 हजार अनुशासित किसानों के माकपा के लाल झंडों के साथ राज्य के विभिन्न इलाकों से पैदल चलते हुए मुंबई में पहुंचकर धरना देने, देश के अन्य कई हिस्सों में किसानों के आंदोलित होने और दिल्ली में कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं में धांधली के विरोध में बेरोजगार छात्र-युवाओं के आंदोलन, को भाजपा के रणनीतिकार आने वाले दिनों में अपने लिए अशुभ का संकेत ही मान रहे हैं।
 

 

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