कठुआ गैंगरेप की सियासत में गठबंधन की ‘महबूबा’ फायदे में रहीं क्या ?

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Sujat bukhari, Sr. Journalist

साल 2015 में जब से पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और बीजेपी ने जम्मू और कश्मीर में एक अजीब तरह का गठबंधन बनाकर सरकार बनाई तब से पीडीपी को ज़मीन पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है.

लेकिन जम्मू के कठुआ ज़िले के आठ साल की बच्ची के साथ हुए गैंगरेप मामले ने सीएम महबूबा मुफ़्ती को उस विषम स्थिति से निपटने में मदद की जिसकी वजह से जम्मू और कश्मीर आमने-सामने थे.

महबूबा मुफ़्ती ने जिस तरह बीजेपी के दो मंत्रियों चंद्र प्रकाश गंगा और लाल सिंह को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर किया है उसके बाद से एक तरह का परिवर्तन दिखाई दे रहा है.

इन दोनों मंत्रियों ने कठुआ रेप केस में अभियुक्त के समर्थन में हिंदू एकता मंच के बैनर तले रैली निकाले जाने में एक अहम भूमिका अदा की थी.

क्योंकि रेप एक मुस्लिम बच्ची के साथ हुआ है और सभी अभियुक्त हिंदू हैं. ऐसे में ये मामला लोगों को हिंदू-मुस्लिम में बांटता है.

सरकार का हिस्सा
चंद्र प्रकाश गंगा और लाल सिंह ने बीती 1 मार्च को हिंदू एकता मंच की रैली में भाग लिया. इसमें इस संगठन की मांगों का समर्थन किया गया.

हिंदू एकता मंच की मांग ये थी कि इस मामले की जांच सीबीआई के हवाले की जाए.

कठुआ में बीती 9 अप्रैल को वकीलों के विरोध प्रदर्शन के बीच जैसे ही इस मामले की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल हुई तो इन मंत्रियों के ख़िलाफ़ माहौल बनना शुरू हो गया कि इन मंत्रियों की उपस्थिति इस वीभत्स अपराध के प्रति बीजेपी की स्वीकृति थी जो सरकार का हिस्सा हैं.

चूंकि इस मामले में जम्मू और कश्मीर दो हिस्सों में बंटा हुआ था. ऐसे में महबूबा मुफ़्ती के लिए ये मुद्दा एक बड़ी चुनौती बन गया.

उन्होंने पहले दिन से इस मामले में कहा है कि पीड़ितों को न्याय दिया जाएगा और किसी तरह की धांधली नहीं होगी.

महबूबा मुफ़्ती का बड़ा दांव
महबूबा ने इस मामले में क्राइम ब्रांच पर भरोसा भी किया जिसका नेतृत्व एसएसपी रमेश कुमार जल्ला कर रहे हैं जो कि एक कश्मीरी हिंदू भी हैं.

सीएम महबूबा मुफ़्ती शुरुआत से इस मामले में पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के संपर्क में रही जिससे दो मंत्रियों का इस्तीफ़ा सुनिश्चित हो सके.

इस मामले में जब वकीलों द्वारा क्राइम ब्रांच की टीम को चार्ज शीट न दाखिल करने देकर न्याय प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश की गई तो काफी हो हल्ला हुआ.

ऐसे में महबूबा मुफ़्ती बीजेपी नेतृत्व को ये समझाने में सफल हो गईं कि उनके फ़ैसले ऐसी छवि बना रहे हैं कि बीजेपी बलात्कारियों का समर्थन कर रही है.

उन्नाव रेप केस के चलते दवाब में चल रही बीजेपी पर महबूबा अपना दवाब बनाने में सफल रहीं.

क्या मजबूत हुईं महबूबा मुफ़्ती?
अगर सवाल ये किया जाए कि महबूबा मुफ़्ती की स्थिति मजबूत हुई है या नहीं तो इसका जवाब हां में है.

महबूबा के लिए, एक ऐसे मुद्दे पर फ़ैसला लेना जिस पर प्रदेश पहले ही धार्मिक आधार पर बंटा हुआ हो, मुश्किल काम था.

इन मंत्रियों को कैबिनेट से बाहर निकालने का फ़ैसला ऐसा था जिससे गठबंधन ख़तरे में पड़ सकता था.

लेकिन उन्होंने बड़े ध्यान से इस मुद्दे की संवेदनशीलता का फायदा उठाया जिससे उन्हें फायदा मिला.

बीजेपी हिंदू-बहुल जम्मू क्षेत्र की सभी 25 सीटें जीतकर सत्ता में आई है. ऐसे में इसकी वोट बैंक की राजनीति से सभी परिचित हैं.

इसी वजह से इन दो मंत्रियों के अलावा केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने भी सीबीआई जांच का समर्थन किया था ताकि उनके वोट बैंक तक संदेश पहुंचाया जा सके.

जबकि क्राइम ब्रांच भी उसी पुलिस का हिस्सा है जो पीडीपी-बीजेपी सरकार के अंतर्गत आती है.

महबूबा का ये फ़ैसला अहम क्यों?
महबूबा के लिए ये दांव अहम इस तरह है क्योंकि सरकार बनने के बाद से बीजेपी ने आज तक अहम मुद्दों पर उनका साथ नहीं दिया है.

7 नवंबर, 2015 को श्रीनगर में आयोजित एक रैली के दौरान पीएम मोदी ने सार्वजनिक रूप से तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बात को महत्व नहीं दिया था क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान के साथ बातचीत आगे बढ़ाने का समर्थन किया था.

केंद्र सरकार कश्मीर में सैन्य नीति जैसी सख़्त नीति को लेकर चल रही है जिसका पीडीपी समर्थन नहीं करती है क्योंकि वह नरम अलगाववादी रुख के लिए जानी जाती है.

इस गठबंधन के उद्देश्यों को बीते तीन सालों से कोई अहमियत नहीं दी गई है.

चुनावी राजनीति
पाकिस्तान के साथ बातचीत, हुर्रियत, आपसी विश्वास बढ़ाने की कोशिशें जैसे तमाम मुद्दे इस गठबंधन बनने के मुख्य कारण थे.

लेकिन बीजेपी ने इन मुद्दों पर ध्यान देने की जगह ज़मीन पर पीडीपी के लिए मुश्किलें बढ़ाई हैं.

पीडीपी के रुख को स्वीकार करना बीजेपी की मुख्य विचारधारा के ख़िलाफ़ जाता है जो पाकिस्तान और हुर्रियत विरोध पर आधारित है.

और इसी तरह बीजेपी जम्मू से लेकर देश के तमाम हिस्सों में अपनी चुनावी राजनीति चला रहे हैं.

महबूबा मुफ़्ती पर सीबीआई को केस सौंपने के लिए दवाब बनाने की जगह अपने मंत्रियों को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर करना बीजेपी के लिए काफ़ी भारी पड़ा है.

क्योंकि बीजेपी ने गठबंधन में रहने को प्राथमिकता दी. बीजेपी इस राज्य में पहली बार सरकार बनाने में सफल हुई है और अगले ही साल आम चुनाव हैं.

ऐसे में बीजेपी जम्मू और कश्मीर जैसे राज्य में अस्थिरता लाने का जोख़िम नहीं उठा सकती है.

विजेता बनकर उभरीं महबूबा
कुछ सूत्रों के मुताबिक़, अगर बीजेपी अपने मंत्रियों को बचाने की कोशिश करती तो ये गठबंधन को ख़तरे में डाल सकता था क्योंकि महबूबा गठबंधन से निकलने को तैयार थीं. और पार्टी इस समय ये परेशानी बर्दाश्त नहीं कर सकती थी.

ऐसे में महबूबा इस दांव में विजेता बनकर उभरी हैं. उन्होंने अपनी पार्टी में अपने वित्त मंत्री हसीब द्राबू को बर्खास्त करके कड़ा संदेश दिया है.

द्राबू का बाहर जाना इसलिए अहम था क्योंकि वह ये जतला रहे थे कि इस सरकार का गठबंधन उनके कंधों पर टिका हुआ है.

क्योंकि वे और राम माधव इस गठबंधन के निर्माता थे. लेकिन महबूबा ने उन्हें बाहर करके ये गलतफहमी दूर कर दी है लेकिन उनकी असली चुनौती कश्मीर में सुरक्षा से जुड़ी है.

ऐसे में वह कश्मीर की राजनीति में अपना सिक्का चला पाती हैं, ये वक्त बताएगा.
First Published On BBC

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