“राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने दलितों पर बढ़ते अत्याचार पर असंतोष प्रकट करने के लिए अनशन किया। अब नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी 12 अप्रैल को पूरे देश में उपवास करने जा रही है। वे संसद सत्र नहीं चलने देने के मसले पर देश का ध्यान खींचने जा रहे हैं। एक सामान्य सी जिज्ञासा है अनशन और उपवास में फर्क क्या है? क्यों राहुल ने अनशन किया और क्यों मोदी-शाह उपवास करने जा रहे हैं। जानते हैं ये 6 फर्क-उपवास व्रत है अनशन आंदोलन
नरेन्द्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी का प्रदर्शन उपवास है। इसका मतलब यह व्रत है। राहुल के अनशन की तरह यह आंदोलन नहीं है। व्रत का मतलब संकल्प भी होता है। चूकि मुद्दा संसद सत्र बर्बाद होने का है इसलिए हो सकता है कि बीजेपी संकल्प ले रही हो कि आगे से ऐसा नहीं होने दिया जाएगा। सत्ताधारी दल का कर्त्तव्य निभाते हुए विपक्ष को मनाया जाएगा। संसद को चलने देने का माहौल रखा जाएगा। जबकि, राहुल के अनशन का मकसद साफ था कि दलितों पर बढ़ रहे अत्याचार को रोको।
2. उपवास शिष्ट आग्रह होता है। पूरा हो या न हो, कोई गिला नहीं। इसलिए आम तौर पर उपवास गैर राजनीतिक होता है। जबकि, अनशन हठ होता है इसलिए यह राजनीतिक होता है।
मोदी-शाह के लिए भी संसद का सत्र चलना जरूरी है। यह कोई ऐसी बात नहीं लगती कि पूरी न हो तो वे ईश्वर से कोई गिला-शिकवा करेंगे। वे श्रद्धा भाव से उपवास करने जा रहे हैं। ईश्वर ने सुन ली, तो सुन ली। नहीं सुनी तो भी ठीक है। वहीं, राहुल के अनशन का मतलब ये है कि अगर सरकार ने नहीं सुनी, तो और बड़ा आंदोलन होगा। यह चेतावनी के समान है।
3. व्रत रूपी उपवास किसी के ख़िलाफ़ नहीं होता। यह तो बस कामना पूर्ण करने के लिए भक्ति का भाव है जबकि अनशन हमेशा किसी के खिलाफ होता है।
मोदी-शाह और बीजेपी का अनशन भी उपवास की भावना के अनुरूप विपक्ष के ख़िलाफ नहीं लगता। वे तो बस कामना कर रहे हैं कि विपक्ष भी सदन को चलने देने में सहयोग करे। अब ये कामना पूर्ण होती है या नहीं, ये बात अलग है। मगर, राहुल ने जो अनशन किया वह पूरी तरह से सत्ता के ख़िलाफ़ था।
4. उपवास अपनी मांग पूरी करने की इच्छा रखने के साथ समर्पण होता है। इसके विपरीत अनशन अपनी मांग पर झुकाने के लिए होता है।
चूकि बीजेपी सत्ताधारी दल है इसलिए मुख्तारी खुद उसके पास है। वह भला किसी को झुकाने की कोशिश क्या करेगी। इसलिए उपवास करते हुए संसद सत्र चलने देने की इच्छा रखते हुए पूरे समर्पण भाव से बीजेपी नेता उपवास रखेंगे ताकि विपक्ष को सदबुद्धि आए और संसद सत्र आगे से चले ऐसा वातावरण पैदा हो। राहुल का अनशन मोदी सरकार को झुकाने की इच्छा के साथ था कि वो इस बात को माने कि आगे से दलितों का उत्पीड़न बंद हो जाएगा।
5. उपवास में समर्पण और त्याग दिखाकर श्रद्धा के प्रदर्शन का भाव होता है ताकि दिल जीतकर मकसद को पाया जा सके। वहीं अनशन में दबाव डालकर लेने का भाव होता है।
उपवास कर बीजेपी जनता-जनार्दन का दिल जीतना चाहती है। इसके अलावा अपने समर्पण और त्याग से वह विपक्ष को भी ख़ुश करना चाहती है ताकि उन्हें प्रेरणा मिल सके। इसलिए मोदी-शाह ने उपवास का रास्ता चुना है। जबकि, राहुल ने अनशन कर सरकार से दलितों के लिए उनका हक लेने का भाव दिखलाया था।
6. उपवास प्रायश्चित के भाव से भी किया जाता है जबकि अनशन में हमेशा आक्रामकता होती है।
ऐसा लगता है कि पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के मन में कोई प्रायश्चित का भाव है। इसी भाव के साथ वे उपवास कर रहे हों। उपवास का यह पहलू भी होता है। मन में मनोकामना रखते हुए उपवास या फिर मन में प्रायश्चित का भाव रखते हुए उपवास। राहुल गांधी ने किसी प्रायश्चित का भाव नहीं रखा था। उन्होंने अनशन कर जनता के गुस्से का इजहार किया था। पूरी आक्रामकता दिखलायी थी।
देखना ये है कि जब नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी उपवास करेंगे तो दूसरों पर इल्ज़ाम लगाने, उन्हें नीचा दिखाने, आरोप लगाने जैसे नकारात्मक भावों की तिलांजलि देकर उपवास की पवित्र भावना को कितना बरकरार रख पाते हैं। उपवास और अनशन में फर्क बरकरार रहता है या कि फर्क मिट जाएगा।