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रिपोर्ट के मुताबिक, गुटखा और पान मसाले का सेवन करने वाले करीब 80 प्रतिशत लोग दक्षिण पूर्व एशिया में रहते हैं उनमें से 66 फीसदी लोग भारत में रहते हैं
भारत में पान मसाला, गुटखा और खैनी को जन स्वास्थ्य का गंभीर मुद्दा बताते हुए धूम्ररहित तंबाकू उत्पादों के निर्माण, बिक्री और आयात पर रोक लगाने की सिफारिश की गई है. यह सिफारिश राष्ट्रीय कैंसर रोकथाम और अनुसंधान परिषद (एनआईसीपीआर) ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के साथ मिलकर तैयार एक रिपोर्ट में की गई है.
कैंसर अनुसंधान परिषद ने एक बयान में बताया कि अपनी तरह की यह पहली रिपोर्ट विश्व स्वास्थ्य संगठन ‘फ्रेम वर्क कन्वेंशन ऑन टोबेको कंट्रोल (एफसीटीसी) के अनुरूप संकलित की गई है. बयान में कहा गया है कि भारत में पान मसाला, गुटखा और खैनी जन स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर मुद्दा है. दुनिया में करीब 36 करोड़ लोग इसका इस्तेमाल करते हैं.
दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में गुटखा खाने वालों में 66 फीसदी भारतीय
‘ग्लोबल टोबेको सर्वे इंडिया रिपोर्ट’ के मुताबिक, गुटखा और पान मसाले का सेवन करने वाले करीब 80 प्रतिशत लोग दक्षिण पूर्व एशिया में रहते हैं उनमें से 66 फीसदी लोग भारत में रहते हैं. इसमें बताया गया है कि तकरीबन 20 करोड़ लोग गुटखा, पान मसाला और खैनी आदि खाते हैं.
बयान में बताया गया है कि ऐसे उत्पादों के निर्माण, बिक्री और आयात पर रोक लगाने की सिफारिश की गई है. इसके अलावा, जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने, खासतौर पर ऐसे धुआं रहित तंबाकू से मुक्ति के लिए स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षण देने की भी सिफारिश की गई है. ऐसे उत्पादों पर टैक्स लगाने और नाबालिगों को बेचने पर भी रोक लगाने की अनुशंसा की गई है.
यह रिपोर्ट बुधवार को आईएमसीआर के महानिदेशक और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत आने वाले स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के सचिव बलराम भार्गव ने जारी की. धूम्ररहित तंबाकू उत्पादों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए एनआईसीपीआर को डब्ल्यूएचओ – एफसीटीटी का ‘ग्लोबल नॉलेज हब’ नामित किया गया है