‘एक्शन’ वाले पीएम को ‘अनशन’ के लिए किसने मजबूर किया ?

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KumarPremJee, Sr. Editor, TRP

क्या राहुल से मिला मोदी को अनशन का मंत्र?

बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है। मगर, कभी इसका इतिहास अनशन करने का नहीं रहा है। राम जन्मभूमि आंदोलन में भी पार्टी ने कभी अनशन का इस्तेमाल किया हो, इसका उदाहरण नहीं मिलता। ऐसे में संसद सत्र नहीं चलने से चिंतित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनशन करने का फैसला कैसे कर लिया? ये मंत्र उन्हें दिया किसने? कोई और नहीं। ये हैं राहुल गांधी जिन्होंने दलितों पर अत्याचार बढ़ने के खिलाफ अनशन कर मोदी सरकार को इतना दबाव में ला दिया कि वह अनशन पर बैठने को तैयार हो गयी।

राहुल को जवाब देने के लिए 12 अप्रैल का अनशन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और देशभर में फैले पार्टी कार्यकर्ता 12 अप्रैल को फास्ट रखेंगे। मकसद होगा संसद नहीं चलने देने की वजह से विपक्ष ने जो कथित नुकसान देश का किया है उससे देश को अवगत कराना। यह घोषित मकसद है। लेकिन, असल मकसद ये है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने जो अनशन किया था उसका जवाब दिया जाए। कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर दलित विरोधी होने और दलितों पर हमलों को नहीं रोक पाने का आरोप लगाया था।

आंदोलन का एक रूप होता है अनशन

अनशन के जवाब में उपवास। दोनों के लिए एक शब्द कहें तो इसे कहते हैं फास्ट। आंदोलन का ये एक ऐसा रूप होता है जिसमें खुद को कष्ट देकर दूसरों को प्रेरित किया जाता है। आम जनता को इस आंदोलन से जोड़कर उन्हें जागरूक किया जाता है। जब जनता जागरूक होती है तो अनशन का तेज बढ़ जाता है। सरकारें अनशन के सामने झुकने लगती हैं।

किसे झुकाना चाहती है बीजेपी?

सत्ताधारी बीजेपी की केन्द्र में और देश के 20 राज्यों में सरकारें हैं। ऐसे में वे किन्हें झुकाना चाहते हैं, जनता को किनके ख़िलाफ़ जागरूक करना चाहते हैं- ये बड़ा सवाल है। संसद नहीं चली, कामकाज नहीं हुआ तो इसके लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराना क्या एकतरफा नहीं होगा? कांग्रेस के पास सदन में ताकत ही कितनी है?

एनडीए के सहयोगी वेल में जाएं तो जिम्मेदार कांग्रेस कैसे?

सवाल ये भी उठेंगे कि एनडीए की सरकार है और एनडीए के सहयोगी दल ही सदन के वेल में जाकर हंगामा कर रहे हों तो इसके लिए कांग्रेस को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? यह मान भी लिया जाए कि विपक्ष अड़ा हुआ था, तो यह उसका स्वभाव होता है। विपक्ष को मनाना पड़ता है। कोशिशें करनी पड़ती है। क्या ऐसी कोशिश की गयी?

क्या सत्ताधारी बीजेपी ने गतिरोध रोकने का राजधर्म निभाया?

संसद में गतिरोध रोकने के लिए बीजेपी ने कौन सा राजधर्म निभाया, यह भी जनता को बताना पड़ेगा। जैसे,

क्या सत्ताधारी दल की ओर से कितनी बार सर्वदलीय मीटिंग बुलाई गयी?
क्या कोई फॉर्मूला दिया गया जिस पर विपक्ष सहमत या असहमत हो?
विपक्ष के स्थगन प्रस्तावों को सदन में क्यों नहीं स्वीकार किया गया। अगर स्वीकार होता, तो कम से कम संबंधित विषय पर चर्चा तो होती?
ऐसा कितनी बार हुआ जब सदन में कांग्रेस के सदस्यों को हल्ला करने के कारण बाउंसरों के जरिए बाहर फेंकवाया गया?
सदन चलाने के लिए सत्ताधारी दल ने अपने कर्त्तव्य का पालन किया ही नहीं। वह सीधे कांग्रेस पर इल्ज़ाम लगाने आ पहुंची। संसद बीत जाने के बाद 70 या 80 हज़ार रुपये नहीं लेने की ‘कुर्बानी’ दिखाकर सरकार कांग्रेस पर इल्ज़ाम मढ़ना चाहती है तो इससे इल्ज़ाम बनता नहीं है।

जब बीजेपी ने राजीव गांधी के इस्तीफे तक संसद ठप का दिया था नारा

पहले भी सत्ताधारी दल हुए हैं। कांग्रेस से अधिक किसके पास इसका अनुभव है? बोफोर्स तोप मामले में बीजेपी अपना नारा भूल गयी थी जब उसने कहा था कि जब तक राजीव गांधी सरकार इस्तीफा नहीं देगी तब तक संसद चलने नहीं देंगे। इससे भी बड़ा अलोकतांत्रिक और असंसदीय व्यवहार का उदाहरण हो सकता है क्या? लेकिन तब भी कांग्रेस ने कभी अनशन नहीं किया क्योंकि अनशन सत्ताधारी दल को शोभा नहीं देता।
(First Published On UCNewsApp.)

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