KumarPremJee, Senior Editor, TRP
Pic Court: ZeenewsIndia.com
उन्नाव गैंगरेप और फिर पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत के मामले में सीबीआई को केस सौंपना कोई उम्मीद नहीं जगाती। गैंगरेप का आरोपी सत्ताधारी पार्टी का विधायक है। गैंगरेप की पीड़िता हत्यारा विधायक का भाई और पुलिस है जिसके सामने और जिसके संरक्षण में हत्या हुई। पूरी घटना पर कार्रवाई नहीं करने के आरोपी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं जिनके आवास पर पीड़िता आत्मदाह करने तक पहुंची थी। सीबीआई की जांच पीड़िता के बयान पर पुलिस और सरकार के लगातार अविश्वास करने पर उनकी सफाई भी है।
किसी घटना की तफ्तीश की जब ज़रूरत हो, अपराधी चिन्हित नहीं हो पा रहा हो तो ऐसे मामले में सीबीआई जांच की जरूरत पड़ती है। मगर उन्नाव गैंगरेप पीड़ित खुद सबूत बनकर खड़ी है। वह बोल रही है कि बीजेपी विधायक और उसके साथियों ने उसके साथ गैंगरेप किया है। अब क्या सीबीआई ये जांच करने आयी है कि पीड़िता सच बोल रही है या झूठ?
पीड़िता मुख्यमंत्री के आवास पर सपरिवार आत्मदाह करने पहुंची थी। उसे ऐसा करने से पुलिस ने रोक कर जाहिर है अपना कर्त्तव्य ही निभाया, मगर मुख्यमंत्री ने उसके बाद क्या किया? अकर्मण्यता दिखलायी। इसकी ही पर्देदारी का नाम है सीबीआई की जांच।
छह महीने पुराने गैंगरेप केस में पीड़िता की बात सुनी ही नहीं गयी। उसके कहने पर केस ही दर्ज नहीं किया गया। पीड़िता पर पुलिस और सरकार ने कभी यकीन नहीं किया। इसके बजाए आरोपियों पर पुलिस और सरकार ने यकीन किया। अपनी इस कारगुजारी को छिपाने के लिए और एक्शन में त्वरित होने का संदेश देने के लिए है सीबीआई की जांच।
आत्मदाह की असफल कोशिश के बाद केस वापस लेने का दबाव पीड़िता के परिवार पर बनाया गया। उसके पिता की पुलिस के सामने पिटाई हुई। गिरफ्तार आरोपी को होना चाहिए था, गिरफ्तार पीड़िता के पिता को किया गया। तुरंत एक्शन बनता है लेकिन सीबीआई के बहाने वक्त लिया जा रहा है ताकि इस दौरान मामला ठंडा हो जाए।
पीड़िता के पिता को अस्पताल नहीं भेजा गया। यह बहुत बड़ा क्राइम है। जिम्मेदार पुलिस को खोज निकालने में वक्त लगने का सवाल ही पैदा नहीं होता। इसमें सीबीआई की क्या जरूरत है? योगी सरकार खुद ये काम कर सकती थी।
पुलिस की गिरफ्त में पीड़िता के पिता की मौत हुई है। यह सरासर हत्या है। इसमें शामिल लोगों पर धारा 302 के तहत केस चलना चाहिए। यह इच्छाशक्ति का सवाल है। इसमें सीबीआई की क्या जरूरत है? यह केस भी स्वयंसिद्ध है कि हिरासत में मौत हुई।
जैसा कि मुख्यमंत्री ने मामले को सीबीआई को सौंपने के बाद कहा है कि उनकी सरकार अपराध पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर चल रही है। बस इसी जुमले को दोहराने के लिए सीबीआई का इस्तेमाल हुआ है।
उन्नाव केस अपराधियों के साथ सरकार के खड़ी रहने का जिन्दा सबूत है। इस सबूत पर सीबीआई जांच की परत चढ़ाकर इसे ढंकने की कोशिश की गयी है।
सीबीआई जांच की पहल विपक्ष के मुंह से उनका नारा छीनने की पहल है। इस बहाने विपक्ष योगी सरकार पर और आक्रामक हो सकता था।
बात साफ है की सीबीआई की जांच से उन्नाव केस में कोई सकारात्मक बदला की उम्मीद नहीं है। सीबीआई सत्ता के दबाव से बाहर नहीं है यह बात बारम्बार साबित हो चुकी है। राज्य सरकार ने अपनी छवि धूमिल होने से बचाने के लिए सीबीआई का सहारा लिया है
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