बगावती ‘कुमार’ से AAP का ‘विश्वास’ खत्म होने की 10 वजह समझिए ..

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राजस्थान के प्रभारी पद से भी हटाए गये कुमार विश्वास …
तेजस्वी नेता ओजस्वी कवि धीमा ज़हर पीते रहे हैं। जानकर भी निश्चित मौत जीते रहे हैं। विश्वास ने किया था खुलासा कि केजरीवाल का नहीं है उन पर विश्वास। सुनाया था केजरीवाल के अपने लिए वो अनमोल वचन, जो इतना अनमोल थे कि कवि कुमार ने डेढ़ साल तक राज बना रखा। सुनिए कि कवि कुमार विश्वास का यह खुलासा जो उन्होंने 2018 की शुरुआत में की थी-

“केजरीवाल ने मुझे डेढ़ साल पहले हंसते हुए कहा था कि आपको मारेंगे, लेकिन शहीद होने नहीं देंगे।“
राजस्थान का प्रभारी कुमार विश्वास को तब बनाया गया था जब उन्होंने पार्टी से बगावत की थी। इस जिम्मेदारी को पाने के बाद से अरविन्द केजरीवाल से उनकी बातचीत भी बंद रही है। अब हटा दिए जाने के बाद कविवर विश्वास की ये स्थिति भी नहीं है कि जाकर पूछें कि ऐसा क्यों किया गया?

सवाल ये है कि कुमार विश्वास अकेले क्यों हैं? जानिए 11 कारण-

पहला कारण

कुमार विश्वास ने हमेशा सत्ता की मुख्य धारा को पसंद किया। पार्टी में जिस किसी ने भी तानाशाही का विरोध किया, कुमार विश्वास उनसे दूर रहे। उनका साथ नहीं दिया।

दूसरा कारण

जब योगेन्द्र यादव को पार्टी से हटाया जा रहा था, तो कभी कुमार विश्वास ने पार्टी को एकजुट रखने में अपनी भूमिका या केजरीवाल का विरोध करने की जरूरत नहीं समझी।

तीसरा कारण

केजरीवाल के समकक्ष अपने आपको समझने की भूल करते रहे कुमार विश्वास। मसलन, वाराणसी में केजरीवाल मोदी के खिलाफ लड़ने गये तो कुमार ने अमेठी में राहुल के खिलाफ लड़ने की ठान ली। एक बार भी आम आदमी पार्टी के नेताओं ने इनके लिए चुनाव प्रचार करने की कभी जरूरत समझी।

चौथा कारण

विरोध करते हुए दबाव की रणनीति पर चलते रहे केजरीवाल। केजरीवाल ने सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दे पर अपने नेता का सार्वजनिक विरोध किया। विरोधी में वीडियो भी निकाले। पार्टी को हमेशा ठेंगे पर रखा।

5 वां कारण

पंजाब में टिकट वितरण को लेकर जो असंतोष उभरा था या दूसरे मौकों पर भी जब कभी भी ऐसे असंतोष सामने आए, कुमार विश्वास पार्टी के विरोध में खड़े दिखे।

6ठा कारण

जेएनयू प्रकरण में भी आगे बढ़कर जिस राष्ट्रवाद की वकालत कुमार विश्वास ने की, उसका मकसद राष्ट्रवादी साबित होना कम और पार्टी की नीति से अलग दिखना ज्यादा रही।

7वां कारण

हाल फिलहाल तक यहां तक कि कपिल मिश्रा तक को जिस तरीके से बेइज्जत कर आम आदमी पार्टी और विधानसभा से निकाला गया, कवि कुमार को अपने लिए कोई भूमिका ही नहीं दिखी।

8वां कारण

राज्यसभा का टिकट पाने को लेकर जिस तरीके से कुमार विश्वास ने अपनी दावेदारी को बनाए रखा, लेकिन इस दावेदारी के लिए जो प्रतिबद्धता पार्टी में दिखानी चाहिए थी उसमें वे संकोच दिखाते रहे, उसे देखते हुए उन्हें राज्यसभा का टिकट नहीं देना सर्वथा उचित था।

9वां कारण

राजस्थान का प्रभारी रहते अगर कुमार विश्वास ने वहां कोई आंदोलन खड़ा कर दिया होता, वहां कैम्प कर लिया होता तो वे राजनीति को पलट सकते थे। लेकिन, उन्होंने इसे ‘कालापानी’ माना।

10वां कारण

केजरीवाल ने माफी प्रकरण में भी पार्टी नेतृत्व से अलग रुख अपनाया। इस बार वो थोड़ा खुलकर विरोध में दिखे। अरुण जेटली केस में केजरीवाल ने माफी मांगने से इनकार कर दिया।

11वां कारण

कुमार विश्वास ने कभी मतभेदों को दूर करने के लिए शिद्दत से कोशिश नहीं दिखलायी। हालांकि यह आरोप केजरीवाल पर अधिक है। फिर भी जब कुमार विश्वास को मालूम था कि उन्हें धीरे-धीरे मारा जा रहा है तो उन्हें अपनी कोशिशों के साथ संघर्ष करते दिखना चाहिए था या फिर अपना रास्ता चुन लेते।

समग्र रूप में देखें तो न कुमार विश्वास को अपनी पार्टी और नेतृत्व पर भरोसा रह गया था और न ही पार्टी को उन पर। ऐसे में धीरे-धीरे उन्हें प्रभावहीन बनाना ही पार्टी का मकसद हो गया। कुमार विश्वास सबकुछ समझते हुए भी धीमा ज़हर लेते रहे। यह सिलसिला अभी थमा नहीं है।”

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