देश के ‘दलित’ के लिए ‘दम लगा के हईशा’ ..

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Team TRP

फरवरी में ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने उत्तर प्रदेश में तीन बड़े कार्यक्रम किए हैं, जिनमें दलितों पर फोकस था.. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद सरीखे संगठन अपने समरसता कार्यक्रमों के जरिए दलितों को जोड़ रहे हैं..
पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के संघ समागम में भागवत ने महात्मा बुद्ध का भी जिक्र किया, जिन्हें इन दिनों दलित अपना आराध्य मानते हैं…
एससी/एसटी एक्ट में बदलाव के खिलाफ 2 अप्रैल को हुए राष्ट्रव्यापी दलित आंदोलन ने बीजेपी की चिंता और बढ़ा दी है. सरकार नहीं चाहती कि दलित अत्याचार को हथियार बनाकर विपक्ष उसे घेरे. इसलिए इस मामले को लेकर अध्यादेश आ सकता है. सत्तारूढ़ बीजेपी और हिंदूवादी संगठन, खासतौर पर दलित वोटों में सेंध लगाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. इसके लिए सबसे बड़ा हथियार हैं आंबेडकर. जिनके सहारे दलितों में पैठ की कसरत जारी है.

देश में अनुसूचित जाति की आबादी 16.6 और अनुसूचित जनजाति की 8.6 फीसदी है. इसमें पैठ बनाने के लिए बीजेपी आंबेडकर का सहारा ले रही है

आगरा में करीब 22 फीसदी जबकि उससे सटे अलीगढ़ में 21 और फिरोजाबाद में 19 फीसदी दलित बताए गए हैं. आगरा के कार्यक्रम में रविदास, कबीरदास और गौतम बुद्ध के फोटो लगाए गए थे. इस कोशिश को दलितों और पिछड़ों को जोड़ने के मकसद से के रूप में देखा गया.

फिर मेरठ के ‘राष्ट्रोदय’ कार्यक्रम में संघ ने छुआछूत मिटाने पर जोर दिया. जातीय भेद मिटाने का आह्रवान किया. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बढ़ते जातीय संघर्ष को लेकर यह कवायद महत्वपूर्ण मानी जा रही है. सहारनपुर में दलितों और सवर्णों के बीच हुए संघर्ष को याद करिए. इससे बीजेपी को नुकसान होने की उम्मीद जताई जा रही है. इस घटना के बाद भीम आर्मी चर्चा में आई. इसके बहाने चंद्रशेखर और जिग्नेश मेवाणी इस क्षेत्र को राजनीति के नीले रंग में रंगने की कोशिश कर रहे हैं.

संघ की इस कसरत से बीजेपी की सेहत सुधरने की उम्मीद लगाई जा रही है. दलित-पिछड़े बड़ा चुनावी मुद्दा हैं. हर पार्टी इन्हें लुभाने की कोशिश में जुटी हुई है. इनके सबसे ज्यादा वोट हैं. तो क्या यह माना जाए कि आरएसएस, विहिप अपनी सोशल इंजीनियरिंग के जरिए बीजेपी के लिए 2019 की चुनावी जमीन तैयार कर रहे हैं?

दलित वोटों के लिए बीजेपी को आंबेडकर का सहारा!

बीजेपी ने अपने सांसदों, विधायकों को डॉ. बीआर आंबेडकर जयंती मनाने के लिए कहा था. दलितों के यहां जाकर यह बताने के लिए कहा है कि सरकार उनके कल्याण के लिए क्या-क्या कर रही है. सियासी जानकारों का कहना है कि जिस तरह से बीजेपी ने यह मिथक तोड़ा कि महात्मा गांधी केवल कांग्रेस के नहीं हैं उसी तरह वह आंबेडकर को लेकर भी काम कर रही है, ताकि दलितों की खैरख्वाह बनने वाली कोई पार्टी आंबेडकर पर अपना एकाधिकार न समझे.

पीएम मोदी ने 13 अप्रैल को दिल्ली में आंबेडकर मेमोरियल का उद्घाटन किया. इस मौके पर कहा कि उनकी सरकार दलितों के साथ अन्याय नहीं होने देगी. ‘हमारी ही सरकार ने 2015 में दलितों पर होने वाले अत्याचार को रोकने के लिए कानून को और सख्त किया. दलितों पर होने वाले अत्याचारों की लिस्ट को 22 अलग-अलग अपराधों से बढ़ाकर 47 कर दिया.’ दूसरी ओर बीजेपी अध्यक्ष दलितों के घर खाना खा रहे हैं.

बीजेपी के मुखपत्र ‘कमल संदेश’ के अप्रैल वाले अंक में डॉ. बीआर आंबेडकर के विचार छापे गए हैं. इसमें कहा गया है कि ‘आंबेडकर ने धारा 370 का विरोध किया. समान नागरिक संहिता का समर्थन किया. वह चाहते थे कि भारत की भाषा संस्कृत हो और आर्य बाहर से नहीं आए थे.’

जाटव वोट में सेंध लगाने का प्रयास

बीजेपी की रणनीति गैर जाटव दलितों में कई बार कुछ हद तक कामयाब रही है. दूसरी ओर माना जा रहा है कि जाटव वोट पर मायावती की पकड़ कोई कमजोर नहीं कर पाया है. इसलिए बीजेपी कांता कर्दम के रूप में जाटव वोटों में सेंध लगाने का प्रयोग भी कर रही है. वह मेरठ की रहने वाली हैं. हाल ही में हुए निकाय चुनाव में पार्टी ने कर्दम को मेरठ से मेयर पद का चुनाव लड़ाया था, लेकिन वह हार गई थीं. फिर भी जातीय समीकरण को देखते हुए उन्हें राज्यसभा भेजा गया.

दलित सांसदों की नाराजगी
इन सब कोशिशों के बावजूद यह नहीं भूलना चाहिए कि बीजेपी के कई दलित सांसद उसके कामकाज से नाराज हैं. दलितों का एक धड़ा आरोप लगा रहा है कि इस वर्ग के उत्पीड़न के लिए बीजेपी और आरएसएस जिम्मेदार हैं. लेकिन, संघ ने अपने एक बयान में स्पष्ट किया है कि “जाति के आधार पर किसी भी भेदभाव अथवा अत्याचार का संघ सदा से विरोध करता है. दलित अत्याचारों को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों का कठोरता से पालन होना चाहिए.”

बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले, छोटेलाल खरवार, उदित राज, यशवंत सिंह और अशोक दोहरे दलित उत्पीड़न के मसले पर पार्टी से नाराज हैं. बहराइच (यूपी) से बीजेपी सांसद साध्वी सावित्री बाई फुले कहती हैं “आरक्षण को लेकर जो संविधान में व्यवस्था है, सरकार उसे लागू करे, जिससे बहुजन समाज आगे बढ़े और गरीबी दूर हो. आरक्षित वर्ग के पद नहीं भरे जा रहे. अनुसूचित जाति के बच्चों की स्कूलों में स्थिति दयनीय है. उन्हें छात्रवृत्ति नहीं मिल रही. इसकी वजह से दलितों और पिछड़ों की मुश्किलें बढ़ रही हैं. हमारी सरकार ने संविधान को लागू नहीं किया. जबकि मैं संविधान लागू करने की मांग को लगातार संसद में उठाते आई हूं.”

‘बहनजी: द राइज एंड फॉल ऑफ मायावती’ नामक किताब लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अजय बोस कहते हैं “राहुल गांधी के मंदिर जाने पर बीजेपी और हिंदूवादी संगठनों में जो रिएक्शन होता है वही बीजेपी नेताओं के आंबेडकर-आंबेडकर करने से दलितों और दलित संगठनों में होता है. बीजेपी उसी समय दलितों में सेंध लगा सकती है जब दलितों को यह लगे कि मायावती जीत नहीं सकतीं. फिलहाल बसपा-सपा गठबंधन के बाद उसे लग रहा है कि मायावती चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं.”

हालांकि, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक प्रोफेसर एके वर्मा पत्रकार अजय बोस से अलग विचार रखते हैं.

वर्मा का मानना है “बीजेपी में दलितों ने अपनी जगह बना ली है. जहां तक मायावती की बात है तो उनसे जाटव तो खुश है लेकिन गैर जाटव दलित संतुष्ट नहीं हैं. इस समय अगर सबसे महत्वपूर्ण चुनाव क्षेत्र यूपी की बात करें तो रिजर्व सीटों वाले सभी सांसद बीजेपी के हैं. 85 में से 75 रिजर्व सीटों पर बीजेपी के विधायक हैं. इसीलिए बीजेपी दलितों तक अपनी बात पहुंचा पा रही है. मुझे नहीं लगता कि बीजेपी को दलित वोट नहीं मिलेगा. अगर किसी तबके को आप अपनी पार्टी के अंदर समाहित करना चाहते हैं तो उसके आईकॉन को तो तवज्जो देनी ही पड़ेगी, बीजेपी यही काम कर रही है.

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