VHP से तोगड़िया की विदाई के पीछे मोदी-संघ की ‘स्ट्रैटजी’ समझिए ..

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Fact Courtesy: Akhilesh Sharma, NDTV
Photo: jansatta

दिल्ली से सटे गुरुग्राम से आईं वे तस्वीरें चौंकाने वाली थीं. भारी सुरक्षा इंतज़ामों के बीच एक चुनाव हो रहा था.

वैसे तो चुनाव में सुरक्षा के इंतज़ाम पर चौंकने की ज़रूरत नहीं लेकिन यह चुनाव भी अनूठा था और सुरक्षा इंतज़ाम भी कुछ अलग.

53 साल के इतिहास में पहली बार विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए वोट डाले गए। ऐसा क्यों हुआ इसके पीछे की कहानी समझनी बेहद ज़रूरी है.

सारा विवाद विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया को लेकर शुरू हुआ. तोगड़िया की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अदावत कोई छुपी बात नहीं है.

एक ज़माने में दोनों नेता साथ थे लेकिन धीरे-धीरे दोनों के रिश्तों में खटास आती गई.

तोगड़िया के आरोप
खटास इतनी बढ़ गई कि हाल ही में तोगड़िया ने गुजरात और राजस्थान की बीजेपी सरकारों पर अपनी हत्या का षडयंत्र करने का आरोप तक लगा दिया.

वो रहस्यमय ढंग से गायब हो गए और फिर उसी अंदाज़ में एक अस्पताल में प्रकट हुए. जानकार मानते हैं कि यह उनका स्वयं का रचाया स्वांग था.

इससे पहले गुजरात विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका को लेकर संघ परिवार में कई उंगलियां उठीं.

कहा गया कि पटेल आंदोलन को भड़काने में तोगड़िया ने सक्रिय भूमिका निभाई. चुनाव के दौरान उनके कई वीडियो भी व्हाट्सऐप पर चलते रहे.

लेकिन सिर के ऊपर से पानी नौ अप्रैल की प्रेस कांफ्रेंस से निकला. इसमें तोगड़िया ने बीजेपी पर राम मंदिर की उपेक्षा करने का आरोप लगाया.

वीएचपी का अध्यक्ष पद
उन्होंने यहां तक कह डाला कि बीजेपी अयोध्या में राम मंदिर के बजाए मस्जिद बनवा सकती है.

संघ सूत्रों के अनुसार इसी के बाद तय कर लिया गया कि अब तोगड़िया का वीएचपी में बने रहना संभव नहीं है. 14 अप्रैल के चुनाव की पटकथा इसी के बाद लिख दी गई.

हालांकि तोगड़िया को इसकी भनक लग गई. उन्हें समझ आ गया कि वीएचपी के अध्यक्ष पद के चुनाव की तैयारी हो रही है.

दरअसल, वीएचपी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष राघव रेड्डी थे जो तोगड़िया के करीबी माने जाते हैं.

अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष ही कार्यकारी अध्यक्ष तथा अन्य पदाधिकारियों का मनोनयन करता है.

संघ की योजना
इसीलिए योजना बनी की राघव रेड्डी की जगह किसी और को अध्यक्ष बनाया जाए.

वीएचपी के अध्यक्ष के निर्वाचन मंडल की सूची बनी और सबको आने के लिए कहा गया. इसमें कुछ अंतरराष्ट्रीय मतदाता भी शामिल हैं.

तोगड़िया ने मतदाता सूची में धांधली का आरोप लगाया और आरके पुरम स्थित वीएचपी कार्यालय पर समर्थकों समेत हंगामा कर दिया.

इसमें मारपीट की शिकायत भी आई. इसी के बाद शनिवार के मतदान के दौरान भारी सुरक्षा का इंतज़ाम किया गया. नतीजा संघ की योजना के मुताबिक ही निकला.

हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल और पूर्व जस्टिस विष्णु सदाशिव कोकजे निर्वाचित घोषित किए गए.

निशाने पर मोदी
पूर्व जस्टिस विष्णु सदाशिव कोकजे को 131 और राघव रेड्डी को 60 वोट मिले. एक वोट अवैध घोषित किया गया.

निर्वाचन के तुरंत बाद कोकजे ने पदाधिकारियों का मनोनयन किया और तोगड़िया की जगह आलोक कुमार को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया.

आलोक कुमार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिल्ली प्रांत के वरिष्ठ नेता हैं और बीजेपी में भी लंबे वक्त तक काम कर चुके हैं.

तोगड़िया ने इसके बाद वीएचपी छोड़ने का एलान कर दिया. वे अनशन पर बैठने की बात भी कर रहे हैं.

हालांकि जानकार मानते हैं कि वीएचपी के प्लेटफॉर्म के बिना उनकी ताकत अब नहीं रहेगी. लेकिन बीजेपी ख़ासतौर से नरेंद्र मोदी तोगड़िया के निशाने पर रहेंगे.

विवादास्पद छवि
ख़बर है कि वे एक किताब भी लिख रहे हैं जिसमें पीएम मोदी पर कुछ और भी आरोप लगा सकते हैं.

वैसे पिछले दिनों उनकी कांग्रेसी नेताओं और हार्दिक पटेल से नज़दीकी चर्चा का विषय रही है.

जब वे रहस्यमय ढंग से लापता होने के बाद अस्पताल में प्रकट हुए थे तब हार्दिक पटेल और कांग्रेस नेता अर्जुन मोढवाडिया उनसे मिलने वहां गए थे.

लेकिन इस बात की संभावना कम ही है कांग्रेस तोगड़िया की विवादास्पद छवि और भड़काऊ बयानों की वजह से उनके नज़दीक जाए.

लेकिन बीजेपी खासतौर से पीएम मोदी पर निशाना साधने के लिए तोगड़िया के कंधों का इस्तेमाल करने में कांग्रेस को शायद ही गुरेज हो.

आलाकमान की तरह…
लेकिन इस प्रकरण ने एक बात बिल्कुल स्पष्ट कर दी है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पीएम मोदी के रास्ते में आने वाली हर अड़चन दूर करने को तत्पर है.

यह वाजपेयी सरकार के वक्त के कटु अनुभवों की सीख है.

क्योंकि तब संघ न सिर्फ एक सुपर पावर की तरह बल्कि असली आलाकमान की तरह सरकार को नियंत्रित करता हुआ दिखता था.

यह न तो संघ की छवि के लिए ठीक रहा और न ही वाजपेयी सरकार के लिए.

तब सरकार के कामकाज को लेकर संघ के अनुषांगिक संगठनों जैसे स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ आदि ने जो अड़ंगे लगाए उससे सरकार की छवि धूमिल हुई.

संघ और बीजेपी
सिर्फ इतना ही नहीं, सरकार जाने के बाद भी तत्कालीन संघ प्रमुख के एस सुदर्शन ने वाजपेयी के प्रधानमंत्री कार्यालय और उनके दत्तक दामाद रंजन भट्टाचार्य के बारे में जो तीखी टिप्पणियां कीं उनसे भी दोनों की छवि को धक्का लगा.

पिछले चार साल में ऐसे मौक़े न के बराबर आए हैं. गाहे-बगाहे स्वदेशी जागरण मंच नीति आयोग के काम पर टिप्पणी करता है.

लेकिन दिलचस्प बात है कि नीति आयोग के कामकाज की समीक्षा के लिए आयोजित मैराथन बैठक में स्वदेशी जागरण मंच के नुमांइदे को ही बुला लिया गया ताकि शिकायतों को आमने-सामने ही दूर किया जा सके.

संघ और बीजेपी के बीच समन्वय बैठक भी अब हर तीन महीने में होती है.

संघ प्रमुख, पीएम और बीजेपी अध्यक्ष लगातार आपसी संपर्क में रहते हैं ताकि किसी भी तरह का भ्रम न हो तथा महत्वपूर्ण विषयों पर आपसी राय से तुरंत फैसले हो सके.

संघ की महत्वाकांक्षा
आरएसएस पर पैनी नज़र रखने वाले वॉल्टर एंडरसन और श्रीधर कामले एक नई किताब लिख रहे हैं.

दोनों लेखकों ने अलग-अलग साक्षात्कारों में कहा है कि मोदी को लेकर संघ की लंबी योजना है.

यह कहा गया है कि संघ चाहता है कि मोदी लंबे समय तक शासन संभालें ताकि भारत को विश्व गुरु बनाने की संघ की महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ाया सके.

शायद यही वजह है कि संघ सरकार के कामकाज में रोड़े अटकाता नहीं दिखना चाहता बल्कि वह उसका रास्ता सुगम करना चाहता है.

तोगड़िया जैसे कांटों को रास्ते से इसी रणनीति के तहत निकाला जा रहा है.

मोदी जैसा ताकतवर
मोहन भागवत जानते हैं कि संघ का उद्देशय पूरा करने में सरकार बड़ी भूमिका निभा सकती है और निभा रही है.

वे यह भी जानते हैं कि बीजेपी के पास आज की तारीख में नरेंद्र मोदी जैसा ताकतवर व वोट खींचने वाला नेता कोई दूसरा नहीं है.

ऐसे में संघ मोदी के हाथ मज़बूत करना चाहता है.

यही वजह है कि तोगड़िया हो या फिर कोई अन्य नेता, उनके लिए फिलहाल मोदी से अपने व्यक्तिगत टकराव और लड़ाई को मूर्त रूप देने का यह समय नहीं है.

यही सोच कर तोगड़िया को फिलहाल अपनी राह चुनने के लिए आजाद कर दिया गया है. अशोक सिंघल के निधन के बाद वीएचपी को बड़ा झटका लगा था.

जिस वीएचपी की स्थापना एमएस गोलवलकर और एस एस आप्टे ने केएम मुंशी, केशवराम काशीराम शास्त्री, मास्टर तारासिंह और स्वामी चिन्मयानंद जैसे दिग्गजों के साथ मिल कर की, सिंघल के निधन के बाद उसके प्रभाव में कमी आती गई.

सिंघल के बाद…
तोगड़िया उनकी जगह लेने में नाकाम रहे. इसके पीछे एक बड़ी वजह उनकी महत्वाकांक्षा और मोदी से उनका टकराव रहा.

अब जिन कोकजे और आलोक कुमार को वीएचीपी की कमान सौंपी गई है, वे संघ की हां में हां मिला कर चलने वाले नेताओं में से हैं.

आने वाले समय में राम मंदिर को लेकर वीएचपी की भूमिका फिर महत्वपूर्ण हो सकती है.

अलग-अलग पक्षकारों को साथ लाकर अदालत से बाहर भी इस विवाद का हल ढूंढने की कोशिश की जा सकती है.

ऐसे में वीएचपी का नर्म नेतृत्व बड़ी भूमिका निभा सकता है. कोकजे और आलोक कुमार से शायद संघ की यही अपेक्षा हो
First Published On BBC

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