‘जटिल’ GST पर वर्ल्ड बैंक की भी सुनिए मोदी जी ..

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“ जब वर्ल्ड बैंक ने कहा कि जीएसटी दुनिया की सबसे जटिल कर प्रणालियों में से एक है तो सरकार ने इसे नजरअंदाज किया। यही वर्ल्ड बैंक तारीफ करता तो सरकार खूब प्रचार करती ”

सरकार की जिम्मेदारी नागरिकों से सही समय पर सही जानकारी साझा करना भी है। साथ ही जरूरी हो तो सरकार को लोगों की शंकाओं का निवारण भी करना चाहिए। लेकिन पिछले कई घटनाक्रम दर्शाते हैं कि अगर कोई मामला सरकार को असहज करता है तो वह उसे नजरअंदाज करने का रुख अपनाती है। हो सकता है कई बार सरकार के पास इन मसलों पर पुख्ता जानकारी या सही तथ्य न हो और वह सही समय का इंतजार करना चाहती हो। लेकिन आज सूचना क्रांति के दौर में लोगों के पास कई स्रोतों से जानकारी पहुंचती है जो कई बार आधी-अधूरी ही नहीं गलत भी होती है। ऐसे में सरकार का जिम्मा बढ़ जाता है कि लोगों को सही तथ्यों के साथ सही समय पर जानकारी मिले। इसमें कई बार राजनीतिक नफा-नुकसान भी जुड़ा होता है।

मसलन, विश्व बैंक ने जब भारत की ईज आफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग में 30 अंकों के सुधार की रिपोर्ट पेश की तो उसे हर मंच पर इस्तेमाल किया गया। राजनीतिक मंचों से लेकर निवेशकों को आकर्षित करने तक सभी जगह इसका उपयोग किया गया। लेकिन जब इसी बैंक ने हाल ही में कहा कि माल एवं सेवा कर (जीएसटी) दुनिया के सबसे कॉम्प्लेक्स यानी जटिल कर सिस्टम में से एक है तो सरकार ने इस बयान को नजरअंदाज करना ही ठीक समझा। अब अगर हम समस्या को समझने के लिए ही तैयार नहीं होंगे तो उसका हल कैसे करेंगे। जबकि यह बात तमाम कारोबारी, उद्यमी और अर्थविद मान रहे हैं कि जीएसटी बहुत ही जटिल कर-व्यवस्था है और उसका कई मामलों में प्रतिकूल असर पड़ रहा है। वैसे, इसकी जटिलता को कम करने के लिए सरकार और जीएसटी काउंसिल लगातार काम कर रही है लेकिन शुरू में ही इसे गुड ऐंड सिंपल टैक्स की धारणा के अनुसार लागू किया जाता तो सभी के लिए ठीक रहता।

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